कमल जीत चौधरी

कमलजीत चौधरी युवा कविता का नया स्वर है। यह स्वर विसंगतियों को भलीभांति पहचानता है। ज्यादा में कम होने को महसूस करता है। बहुत समय में कम होने को पहचानता है। प्रतिवर्ष रस्म की तरह होने वाले स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस आयोजनों की हकीकत भी समझता है . दरअसल जनता का अब हर दिन 13 अप्रैल होने के लिए अभिशप्त है जबकि वह 23 मार्च होने के लिए तैयार है। और इस तरह का जो 15 अगस्त होगा वही स्थायी स्वाधीनता दिवस होगा। पहली बार पर प्रस्तुत है कुछ अलग अंदाजे बयाँ  वाली कमलजीत की कविताएँ। 

      जन्म : जम्मू कश्मीर के एक सीमावर्ती गाँव काली बड़ी ,साम्बा में एक विस्थापित जाट परिवार में .
      माँ     : सुश्री सुदेश – एक गृहस्थन 
      पिता  : श्री रतन – सेवानिवृत्त सेनाधिकारी 
      शिक्षा : जम्मू वि वि से हिन्दी में प्रथम स्थान के साथ परास्नात्तक ; एम फिल .
      लेखन : 2007 में कविता लिखनी शुरू की
      प्रकाशित  : अशोक कुमार द्वारा सम्पादित चर्चित काव्य संग्रह तवी जहाँ से गुजरती है में कुछ रचनाएँ संकलित।   
      अन्य :  नया ज्ञानोदय ,अक्षर पर्व ,अभिव्यक्ति ,अभियान ,सृजन सन्दर्भ ,हिमाचल मित्र ,दस्तक ,परस्पर 
                   दैनिक जागरण ,लोकगंगा ,उत्तर प्रदेश ,शब्द सरोकार ,शीराज़ा आदि में कविताएँ प्रकाशित .
       
      समय समय पर आकाशवाणी से कविताएँ प्रसारित .
      वरिष्ठ कवि सम्पादक प्रभात पाण्डेय द्वारा सम्पादित तथा प्रकाशनार्थ कविता संग्रह कविता एकादश में 
      अखिल भारत से ग्यारह कवियों में चयनित .
      सम्प्रति :  उच्च शिक्षा विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर .

                     

       नमक में आटा  

       हमने 
       कम समय में
       बहुत बातें की  
       बहुत  बातों में 
       कम समय लिया 
      
       कम समय में 
       लम्बी यात्राएं की 
       लम्बी यात्राओं में 
       कम समय लिया 
       कम समय में 
       बहुत समय लिया 
       बहुत समय में 
       कम समय लिया 
       इस तरह हम 
       कम में ज्यादा 
       ज्यादा में कम  होते गए  
       हमने होना था 
       आटे में नमक  
       मगर हम नमक में आटा होते गए !
        15 अगस्त 1947
      तुम बरत रहे हो रोज 
      जनसमूह पर 13 अप्रैल 1919
      मैं पड़ोसिओं का मुंह देखे बगैर 
      23 मार्च 1931 हो जाने के लिए तैयार हूँ 
      आएगा 
      जरूर आएगा 
      15 अगस्त 1947 भी आएगा 
       
      आएगा 
      और अबकी कभी न जाएगा 
     
       जनता जाने नहीं देगी .
       कवि के लिए 
     तुम्हारे पैर भूत की तरह 
     पीछे उलटे मोड़ दिए जाते हैं 
     तुम चुप रहते हो 
     तुम्हारा चेहरा पीठ की तरफ दरेर दिया जाता है 
     तुम चुप रहते हो 
     तुम्हारे शब्दों को नपुंसकता के इंजेक्शन लगा कर 
     अर्थ तक पहुँचने दिया जाता है 
     तुम चुप रहते हो 
     तुम्हारी ऑंखें और कान छीन लिए जाते हैं 
     तुम चुप रहते हो 
     तुम्हारे दांतों की मेहनत के अखरोट 
     दूसरा खा जाता है 
     तुम चुप रहते हो 
     तुम्हारी कविता सुन कर  
     मुख्याथिती का कुर्ता झक सफेद  हो जाता है 
     तुम चुप रहते हो 
     उस रात भी 
     जब डेढ़ मीटर कपड़े को तरसती 
     एक लड़की के यौनांगों में 
     पूरी दिल्ली नमक उडेल रही थी 
     तुम चुप ही थे 
    
     जरा थोड़ा सा ज्यादा 
     नमक 
     डल गया है तुम्हारी सब्जी में 
     आज फिर तुमने 
     आसमान  सिर पर उठा लिया है .
     
       दांत और ब्लेड -१
      दांत सिर्फ शेर और भेड़िए के ही नहीं होते    
      चूहे और गिलहरी के भी होते हैं
      ब्लेड सिर्फ तुम्हारे पास ही नहीं हैं
      
      मिस्त्री और नाई के पास भी हैं |
       दांत और ब्लेड -२
     तुम्हारे रक्तसने दांतों को देख
     मैंने नमक खाना छोड़ दिया है
     मैं दांतों का मुकाबला दांतों से करूँगा
     तुम्हारे हाथों में ब्लेड देख
     मेरे खून का लोहा खुरदरापन छोड़ चुका
   
     मैं धार का मुकाबला धार से करूँगा |
       दांत और ब्लेड -३  
   
     बोलो तो सही
     तुम्हारी दहाड़ ममिया जाएगी
     मैं दांत के साथ दांत बनकर
     तुम्हारे मुंह में निकल चुका हूँ
     डालो तो सही
     अपनी जेब में हाथ                                                                                                                                                                                         
     मैं अन्दर बैठा ब्लेड बन चुका हूँ |       
   
  
      साहित्यिक दोस्त                                                   
      
      मेरे दोस्त अपनी
      उपस्थिति दर्ज करवाना चाहते हैं
      वे गले में काठ की घंटियाँ बाँधते हैं
      उन्हें आर पार देखने की आदत है
      वे शीशे के घरों में रहते हैं
       
      पत्थरों से डरते हैं
      कांच की लड़कियों से प्रेम करते हैं
      बम पर बैठकर
      वे फूल पर कवितायें लिखतें हैं
      काव्य गोष्ठिओं में खूब हँसते हैं    
      शराबखानों में गम्भीर हो जाते हैं
      यह भी उनकी कला है
      अपनी मोम की जेबों में
      वे आग रखते हैं |  
     एम एफ हुसैन के लिए 
      मेरे ईश्वर के पाँव में 
      चप्पल नहीं है 
      सिर पर मुकुट नहीं है 

      वह सिर से लेकर पाँव तक 
      शहर से लेकर गाँव तक नंगा है 
      पल प्रतिपल खुंखार जानवर द्वारा 
      बलात्कृत है 
      सोने की खिड़कियों के परदे 
      उसे ढकने का बहुत प्रयास करते हैं 
      पर शराबी कविताएँ 
      उफनती सरिताएँ 
      किलों को ढहाती 
      खून से लथपथ मेरे ईश्वर को 
      सामने ला देती है 
      उसे देखकर कोई झंडा नीचा नहीं होता 
      
      मेरे ईश्वर को नंगा बलात्कृत 
      बनाने वाले 
      मेरे देश के ईश्वर को 
      कोई कठघरा नहीं घेरता …

      उधर जब पाँच सितारा होटल में 
      सभ्य पोशाक वाली दूसरे की पत्नी 
      तथाकथित ईश्वर की बाहों में गाती है 
      इधर सड़क पर नग्नता 
      रेप ऑफ गॉड से लेकर सलत वाक तक 
     
      गौण मौलिकता दर्शाती है 

      नग्न होने पर
      सच निगला नहीं जा सकता –
     
      वह तो और भी पैना हो जाता  है .
    
      तीन आदमी 
      एक आदमी 
      गाँव में है 
  
      उसमें शहर है 
      एक आदमी 
      शहर में है 
    
      उसमें गाँव है 

      एक आदमी 
      दिल्ली में है 

      उसमें दिल्ली है .
       एक सपना 
      वहाँ 
      सब जोर जोर से कह रहे थे –
      औरत खाली स्लेट होती है 
      उस पर बहुत कुछ 
      लिखा मिटाया जा सकता है 
      औरत ने चुपचाप अपनी स्याही उठाई 
      और 
      चल दी 

      आगे मेरी नींद खुल गई .

       सम्पर्क :

       गाँव व डाक –  काली बड़ी , साम्बा 
       जम्मू व कश्मीर { 184121}
       मोबाइल नंबर – 09419274403
       ई मेल – kamal.j.choudhary@gmail.com