नूर अफशां नेयाज

नूर अफशां नेयाज का जन्म पटना में हुआ। नेयाज ने पटना साइंस कालेज से बायो केमिस्ट्री में परास्नातक किया। इसके पश्चात बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल से बी. एड. किया। कवितायें लिखने एवं पेंटिंग्स बनाने में इनकी रुचि है।  

हर व्यक्ति के अन्दर हमेशा एक कवि छुपा होता है। नूर अफशां नेयाज के अन्दर के कवि ने भी अपनी कुछ बातें कहनी शुरू कर दीं है।  यह दुनिया किस तरह उस मुहब्बत के जरिये चलती है जिसके अंदाज बिलकुल जुदा हैं। कैसे सारी मुहब्बत लुटा कर भी एक स्त्री अपने महबूब के सामने हमेशा दोयम दर्जे की बनी रहती है। नूर ने बड़े बेबाक अंदाज में अपने लफ्ज़ों को कविता के रूप में उकेरा है। ये नूर की प्रारम्भिक कविताएँ हैं जिसे बड़े हिचक के साथ इन्होंने पहली बार के लिए दिया। फिर भी इन कविताओं में वह चमक सहज देखी जा सकती है जो बाद में एक बड़ी कविता का आधार बनती है।  पहली बार पर प्रस्तुत है नेयाज की कुछ प्रारम्भिक कविताएँ


बेबसी  

तुम ही दर्द देते हो फिर दवा देते हो
बेवक्त चिनगारि
यों को हवा देते हो

सन्नाटों को भेदती सिसकियाँ

खुले लटों सी उलझी जिन्दगियाँ
क्योँ होठों को खुलने की वजह देते हो
बेवक्त चिनगारि
यों को हवा देते  हो

हो बड़े रुसूख़  वाले अहम में जीते हो

आकाश में डेरा है तो जमी को जला देते हो।
भगवान बने बैठे हो मौत की सजा  देते हो
बेवक्त चिनगारियों को हवा देते  हो


क्या ताकत  आ जाने से दयालुता ख़त्म  हो जाती है

क्यूं रगों में बहने वाले लहू को जला देते हो
सिंहासन पे बैठ कर क्योँ मानवता को शर्मशार करते हो
बेवक्त चिनगारि
यों को हवा देते  हो

सूनी गो
दों का हिसाब दे सकोगे
सूनी कलाइयों को खनक दे सकोगे
तो क्योँ अँधेरी में जलती मशाल बुझा  देते हो
बेवक्त चिनगारियों को हवा देते  हो

नेक फरिश्ता  

वह शाम का मंज़र था मौसम भी सुहाना था
महबूब से मिलने का अच्छा यह बहाना था
साँझ के ढ़लते ही जाने सदा कहाँ से आई
मासूमित को ठगने काली रात मौत बन के आई
भीड़ में खो गई न जाने कैसे उसकी सांसें

कौन छीन ले गया धड़कनों को
किसके हाथों ने साधा निशाना था
सबके होठों पे अब उसका ही फ़साना  था
बडी मुश्किल से कुछ खुशियाँ खरीदी होगी    
चंद रंग जिंदगी में घोला होगा
ग़ुरबत के उन पलों को  मुश्किल से उसने झेला होगा
नेक दिल इमानदार ख़ुद्दार
हौसलों का खज़ाना था
विलुप्त होती मानवता का साक्षात नमूना  था
कोई सिक्कों में बिका कोई रुतबे से दबा
और जो बिक न पाया जो झुक न पाया
यह वही फरिश्ता था 
यह वही फरिश्ता था
                    
संपर्क-

द्वारा मो कैसर आलम
महामति प्राण नाथ डिग्री कॉलेज
मऊ, चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)

मोबाईल- 09415556849 
ई-मेल: naneyaz@gmail.com
 

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स गूगल से साभार ली गयी हैं।)