डॉ. अरविन्द दुबे की कविताएँ
अमृत–कलश की खोज में
हमने भेजा है एक अंतरिक्ष यान
अमृत–कलश की तलाश में,
जिसे पी कर
सब अमर हो जाएंगे।
फिर न रहेगा डर
आंतक का,
गुंडों का,
फियादीन या जेहादियों का।
न इजराइल के हमलों का,
न अमेरिका की दादागीरी का
न र्इराक की धौंस का,
कितनी सुंदर हो जाएगी दुनियां।
करो इंतजार
वह अंतरिक्ष यान
एक दिन लौटेगा जरूर,
अमृत–कलश ले कर।
इसी उम्मीद में
चैन से हैं हम सब।
और यान उड़ गया
सुदूर अंतरिक्ष से आए थे वे
प्रकाश की गति से तेज यानों में।
चिंतातुर, डरे, बीमार।
उनके यहां थी
युद्ध–लिप्सा, अंहकार,
मक्कारी और हैवानियत
और लड़ने को
अति विकसित एटमी हथियार।
खत्म होने को थी उनकी सभ्यता।
सुदूर ग्रह से आए थे
वे हमारे पास,
हमारी ओर बांहें फैलाए,
एक आशापूर्ण दृष्टि लिए,
एक बसेरे की तलाश में,
जहां पनप सकें वे।
मगर हम क्या देते उन्हें,
कैसे कहते आओ रूको
यहां सब कुशल है
ताजी हवा है
मंगल ही मंगल है?
हमारे यहां भी
नाच रहा था आतंक का दैत्य,
सासों में भर रहा था विषैला धुआं।
हम भी खड़े थे
एटमी युद्ध के कगार पर,
अपनी–अपनी दादागीरी,
अपना–अपना अंहकार लिए,
रणचंडी की प्रतीक्षा में।
नहीं कह पाए हम एक बार
‘‘रूको, हमारे घर चलो’’
जड़ हो गर्इ हमारी जुबान
मर गर्इ अतिथि–प्रियता।
उड़ गया अंतरिक्ष यान
उसके साथ वे भी
एक नए बसेरे की तलाश में,
जहां सब मंगल ही मंगल हो।
ऐ अनजान मित्रों
जब मिल जाए तुम्हें
कोर्इ ऐसी जगह
जो हो
भयमुक्त, प्रदूषण मुक्त,
मानवता से लबालब,
हमें भी बताना
क्योंकि
हमें भी एक दिन भटकना है,
तुम्हारी ही तरह,
बसेरे की तलाश में।
एक मरती हुर्इ प्रेम कथा
वह लड़की
अपने प्रेमी के होठों का
गहरा चुंबन लेकर
अभी–अभी मुड़ी है,
चुरा कर चंद कोशिकाएं
अपने प्रियतम् के होठों की,
जिन्हें भेजना है उसे
जेनेटिक–मैपिंग को।
कल तक मिलेगी रिपोर्ट
कि कितना हरामी है,
क्रूर, सैडिस्ट, केसनोवा
उसका यह चौतींसवां प्रेमी।
उसे होना है ब्रेन कैंसर,
पचपन वर्ष की आयु में।
और भी बहुत कुछ होगा
उस रिपोर्ट में।
चौतीसवीं बार फिर
मर जाएगी एक प्रेम कथा,
एक पूर्व–नियोजित प्रेम।
कुछ अन्य कविताएं
बेशर्म लड़की
तितली के पंखों से,
गुलाब की पंखुड़ियों,
मोरपंखी के सूखे पत्तों से
किताब सजाती है,
वह एक लड़की।
पर इसे पढ़ नहीं पायेगी वह।
उसे तो पढ़ना है
घर-आंगन, चूल्हे की राख,
बच्चों का गू-मूत,
पति का पौरुष (अत्याचार),
बताती है मां,
अपने अब तक के अनुभव से।
फिर भी नहीं छोड़ती
किताबों में छिपाना, रंगीन पत्तियां,
मन में उड़ाना, रंगीन तितलियां,
सपने सजाना,
बेशर्म लड़की।
देखती है सपने
सफेद घोड़े पर सवार राजकुमार के।
सोती रहती है
बियावान में बने,
अपने सपनों के महल में,
अकेले सदियों तक,
सोती सुन्दरी के सपने के साथ।
तब भी,
जब कराहती है
एक डिब्बा किरासिन
एक माचिस की तीली के डर से।
जली आत्मा, जला तन ले कर,
अपनों को छोड़ कर,
सपनों को तोड़ कर,
सदियों की नींद से
जाग नहीं पाती है,
बेशर्म लड़की।
खड़ीं हैं चौराहों पर,
जांघों के बीच खुजातीं
बेशर्म आंखें,
बजातीं सीटियां,
कसती फब्तियां।
नजरें झुकाकर ,
थोडा सटपटाकर,
स्कूल जाना क्यों,
पढ़ना-पढ़ाना क्यों,
छोड़ नहीं पाती है
बेशर्म लड़की।
आई जो गर्भ में,
खडे हो गये कितने सवाल।
क्या है,
लड़का या लड़की?
लड़की?
गर्भ रखना है क्या?
जन्मने से पहले ही
चिमटियों से खींच कर नोंच ली जाती है,
बोटी-बोटी कर दिया जाता है शरीर।
खुश होती है मां,
अब नाराज नहीं होंगे ‘वे’
खुश होता है ‘बाप’
एक मुसीबत तो टली।
फिर उसी गर्भ में,
हत्यारी दुनियां में,
बार-बार आना क्यों
छोड़ नहीं पाती है
बेशर्म लड़की।