मनोज पाण्डेय

क्या हो अगर आज जो स्थिति है वह पलट जाय. अगर आम आदमी के हिस्से में सारी धूप रख दी जाय और साधन-संपन्न लोगों के हिस्से में भयावह अन्धेरा रख दिया जाय. क्या हो अगर आज गांधी जी आज सपरिवार बिहार के चंपारण की यात्रा पर जाय. खाए-अघाए लोगों के लिए यह भले ही अकल्पनीय हो सकता है लेकिन एक कवि इसीलिये विशिष्ट होता है कि वह स्थितियों को इस तरह रख कर भी देख और सोच सकता है और एक समरसतापूर्ण समाज की परिकल्पना कर सकता है. वह समाज जो आज भी हम सबके लिए प्रेय है. वह समाज जिसमें सब बराबर हों. हमारे नए कवि मनोज पाण्डेय इस नयी पहल के हामी हैं. वह जानते हैं कि एकतरफा प्रेम मनोरोग होता है इसलिए वे ऐसा प्रेम चाहते हैं जो दोनों तरफ से बराबर-बराबर का हो. तो आइए रू-ब-रू होते हैं मनोज की तरोताजी कविताओं से.     

नई पहल

फिर से बाटना लाजमी है
जरूरी है
बाटना अलग करना नहीं
बल्कि बराबरी है
कि आपके हिस्से में
क्यों रहे
“दिन होता है”
और मेरे हिस्से में
“रात होती है”
क्यों न कुछ दिन
तुम्हारे हिस्से में
“रात होता रहे”
और मेरे हिस्से
“दिन होती रहे”
यह नई पहल 
व्याकरण में
होनी तो चहिये .

 समझदार लोग

समझदार लोग
साध लेते है
छल,छंद, औ’ दम्भ

समझदार लोग जब बोलते है ‘हम’ की भाषा तो
प्रभावी ढ़ंग से उभरता है उनका ‘मैं’
यह उनकी भाषा
‘साधने’ की कला है।

समझदार लोग रचते हैं
रचकर उसी में बसते हैं
अपने रचे में
अपनों को भी बसाते हैं
ज्यादा सही कि अपनों को ही बसाते हैं

समझदार लोग सूंघ लेते हैं
अवसर
और कलात्मक ढ़ंग से बना देते है
अपने आप को अपरिहार्य

इस तरह
समझदार, अंततः समझदार बना रहता है

एकतरफा प्रेम

बार-बार हमें
बताया जाता है कि
बहुत सुंदर है हमारा देश
हजारों हजार प्रेम करने वाले लोगों की
सुनाई जाती है कहानियां

नियम और फायदे गिनाते हुए
संगीनों और बूटों की चमक-धमक के साथ
कहा जाता है कि जो ‘हमारा’ है
इसलिए मान लो कि ‘तुम्हारा’ भी है ।

अब लाजमी है कि
प्रेम करो……….तुम

लेकिन ..
मैं नहीं कर सकता
नहीं ही कर सकता ….कि
मालूम है मुझे
‘एकतरफा प्रेम’ मनोरोग है ……

 गाँधी! कैसे गए थे चंपारण?

 (बिहार जाने वाली ट्रेनों के जनरल डिब्बो में यात्रा करने वालों के प्रति )

पहली बार
चम्पारण
किस ट्रेन से गए थे
गाँधी ?
‘सत्याग्रह’ पकड़ी थी,तो
गोरखपुर उतरे या
छपरा
आम्रपाली थी तो
कितनी लेट

तीसरे दर्जे के डिब्बे में
जगह पाने के लिए
गाँधी! कितने घंटे पहले
स्टेशन पर आ गए थे
तुम ?
लाइन में कितनी देर खड़ा रहना पड़ा था ?
कस्तूरबा भी रही होंगीं
एक बेटे को गोदी उठाए
और दूसरे की अंगुली पकडे
मोटरी-गठरी भी रही होगी साथ
लाइन सीधी कराने में
आर० पी० यफ० के सिपाही ने
कितनी बार डंडे फटकारे थे ?
गालियों की गिनती नहीं की होगी
तुमने?

शायद
योग भी करते थे तुम
हाँ, बताओ मूत्रयोग
में कितनी पीड़ा हुई थी
गंधाते लोगों के
बीच!
तीसरे दर्जे के आदमी को
अपनी पेशाब रोकने में
महारत हासिल होती है ना !

टिकट होने के बाद भी
जी० आर० पी० और टी० टी० बाबू को
कितने रुपये दिए थे ?
टिन के डब्बे के साथ
कपडे के थैले का अलग
हिसाब भी तो जोड़ा
होगा टी० टी० बाबू ने

गाँधी !
तुम्हारा तीसरा दर्जा
सत्याग्रह, जननायक
सम्पूर्णक्रांति, सप्तक्रांति
सदभावना, वैशाली
और न जाने कितनी ट्रेनों
के जनरल डिब्बों  से कितना
मिलता था

कभी मिलें  तो
बताना !!!!!

संपर्क-
मोबाईल-9868000221