भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता से पहला कविता संग्रह ‘दूसरे दिन के लिए’ अभी हाल ही में प्रकाशित
समकालीन सृजन का समवेत स्वर
भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता से पहला कविता संग्रह ‘दूसरे दिन के लिए’ अभी हाल ही में प्रकाशित
शंकरानन्द का जन्म 8 अक्टूबर 1983 को बिहार के हरिपुर,खगडिया मे हुआ। हिन्दी में परास्नातक। नया ज्ञानोदय, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, कथन, परिकथा, साक्षात्कार, वसुधा, स्वाधीनता, बया आदि पत्रिकाऔँ मेँ कविताएँ प्रकाशित। कथन, वसुधा और परिकथा मेँ कहानियाँ प्रकाशित। उद्भावना, पक्षधर, शुक्रवार और पब्लिक एजेँडा मेँ समीक्षाएँ प्रकाशित।
सम्पर्क- क्रान्ति भवन, कृष्णा नगर,खगडिया 851204
ई-मेल- ssshankaranand@gmail.com
मोबाइल- 08986933049
बुखार
इस हाल मेँ कुछ याद नहीँ
बस सपनेँ हैँ जो खोल रहे हैँ अपने पंख।
कि कोई ताजी हवा आए और
बदल दे मन के पत्तोँ का रंग।
एक पल को धूप रुक जाए कमरे मेँ
एक पल को थम जाए मौसम।
न पानी का स्वाद अच्छा लगता है
न अन्न का।
इस हाल मेँ कुछ याद नहीँ
बस जीवन का स्वाद है जीभ पर।
पंख
नन्हे पंख थामते हैं चिड़िया की देह और
उड़ जाते हैं
ऐसे ही थामना तुम मुझे
संभालना इतने सलीके से की
उड़ना कभी छूट नहीं पाए
मैं रंगू तो आकाश और
थामू तो तुम्हे ओ मेरे पंख
खरोंच
पत्थर हो या टहनी या मन हो या देह
सब कोमल हैं खरोंच के लिए
कभी खून बहता है और कभी
सिसकी भी नहीं सुनाई पड़ती
लेकिन खरोंच का एहसास कभी खत्म नहीं होता
चाहे बीते कितने बरस
नहीं होता फीका कभी उसका रंग
दुह्स्वप्न की तरह बार-बार लौटता है
बचाता है हर बार नयी खरोंच से
आँखे खुली दो कदम आगे का चुभना भी
देख लेती हैं
तोड़ना
अगर पसीना बहे तो बहे
अगर सांस फूले तो फूले
रूकना संभव नहीं
संभव नहीं तोड़ना छोड़ना
तमाम खंडहर को
जहाँ की हवा में भी जहर है