हिमांगी त्रिपाठी

                                                           (मार्कंडेय जी)
मार्कण्डेय जी की पुण्य तिथि (18 मार्च) के अवसर पर हम पहली बार पर कुछ विशिष्ट सामग्री क्रमवार प्रस्तुत करने जा रहे हैं। इसी क्रम की दूसरी कड़ी में प्रस्तुत है हिमांगी का आलेख ‘मार्कंडेय की कहानियों में स्त्री’. हिमांगी द्वारा लिखा गया यह पहला आलेख है जिसे हम यहाँ पहली बार के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।


मार्कण्डेय की कहानियों में स्त्री

उपन्यास सम्राट कहे  जाने वाले प्रेमचन्द ने बड़ी ही सुन्दरता के साथ, अपने उपन्यासों, कहानियों में स्त्री की स्थिति का वर्णन किया है। जहाँ एक ओर उन्होंने अपने उपन्यास ‘गोदान’ में धनिया के चरित्र को उभारा है, वहीं दूसरी ओर उनकी कहानी ‘कफन’ में किस प्रकार से एक स्त्री का शोषण दिखाया गया है, यह सबसे छिपा नहीं है। प्रेमचन्द के उपरान्त ‘मार्कण्डेय’ एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने कहानी के माध्यम से अपनी एक अलग पहचान बनाई। मार्कण्डेय ने अपने 8 कहानी संग्रह में ग्रामीण जीवन की प्रत्येक परिस्थिति को दिखाया है, किस प्रकार से मनुष्य समाज में रह कर भी समाज में शिकार का पात्र होता है, यह उनके कहानी संकलन में हमें देखने को मिलता है। समाज में स्त्रियों को सम्मान देने के बजाय उसका हर गली-कूचे में किस प्रकार शोषण हो रहा है यह हमें उनकी कहानी में देखने को मिलता है।

मृणालिनी  एक ऐसी स्त्री जो बहुत ही खुशमिजाज पढ़ी-लिखी और व्यवहारशील नारी थी। विवाह के पहले वह अपने जीवन में बहुत खुश  थी, किन्तु विवाहोपरान्त वह छली गई अपने पति द्वारा। मार्कण्डेय की इन पंक्तियों में मृणालिनी की बेबसी साफ झलकती है – ‘‘स्त्री सहारा चाहती है, स्त्री मुहब्बत चाहती है, स्त्री एक पुरूष चाहती है, पर जिसे चाहती है, उसी की ही बन कर जीना चाहती है – चाहे वह उसका विवाहित पति हो, चाहे मनचाहा प्रेमी, पर उसी के आगे, उसी के हाथों अपनी अस्मत लुटती देख कर वह मर जाती है, टूट जाती है ………………..।’’ 
क्या स्त्री का जीवन केवल पुरूषों का शिकार  बनने या उसके साथ जबरन हुये अत्याचार को सहन करने के लिये हुआ है? मार्कण्डेय ने अपने कहानी संकलन में नारी की स्थिति को बहुत गहराई से उकेरा है। कहीं नारी खुद दूसरे के हाथों शिकार बनती है, तो कहीं किसी को अपना शिकार बनाती है। मार्कण्डेय की कहानी ‘सात बच्चों की माँ’ में मार्कण्डेय ने एक ऐसी ही स्त्री पात्र का वर्णन किया है, जो पर पुरूष के प्रति इतनी आसक्त है, कि अपने सात-सात बच्चों का ख्याल किये बिना छोड़ कर परदेश भाग जाती है। जिसके साथ वह भागती है वह पुरूष भी उसे सन्देह की दृष्टि से देखता है और उसे इतना पीटता है कि वह बेहोश हो जाती है – ‘‘ एक दिन ऐसा हुआ कि मिल से मुझे चार बजे दिन में ही छुट्टी मिल गई। मैं आया, तो देखता हूँ कि वह एक राही को पानी पिलाती हुई मुस्कुरा कर बातें कर रही है, गुस्से का ठिकाना नहीं रहा। मैंने उसी जगह धूप में सूखते चैले से उसे इतना मारा कि वह बेहोश हो गई और उसे वहीं छोड़ कर मैं यहाँ भाग आया।’’
हर स्थिति में स्त्री को ही शिकार  बनना पड़ता है। कहीं वो समाज में गन्दी नजर रखने वालों  का शिकार बनती है, तो कहीं अपने ही पति के सामने किसी और के हाथों अपनी इज्जत गँवाती है। स्त्री स्नेह, वात्सल्य और ममता की मूर्ति है, किन्तु फिर भी दलित समाज स्त्रियों को अत्याचार, प्रताड़ना देना नहीं भूलता। 
मार्कण्डेय  ने ग्रामीण वातावतरण को बहुत नजदीक से देखा और यह भी जाना कि किस प्रकार से गांव में  पूँजीपति निम्न वर्ग की स्त्रियों  का शोषण करते हैं। किस प्रकार से कुछ पैसों में उन्हें खरीद कर उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं। यही एक कारण था जिसके चलते मार्कण्डेय को अपनी कहानियों में स्त्री पात्र की आवश्यकता थी। वे अपनी कहानियों के माध्यम से स्त्री को सम्मान दिलाने का प्रयास कर रहे थे इसी कारण उन्होंने वासवी की माँ, सात बच्चों की माँ, कहानी के लिये नारी पात्र चाहिये, मिस शान्ता आदि कहानियों में नारी को ही प्रमुखता दी है। 
कथाकार  मार्कण्डेय ने अपनी कहानी  ‘कहानी के लिये नारी पात्र चाहिये’ में सन्ध्या, रमोला, लक्ष्मी और रशीदा जैसी नारियों का चित्रण कर नारी के अलग-अलग रूप को चित्रित किया है। जहाँ एक ओर अनपढ़ गाँव की लड़की सन्ध्या का वर्णन किया गया है, जो अपनी ही चाची के खिलाफ होकर एक प्रोफेसर के साथ भाग जाती है और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करती है वहीं दूसरी और रमोला का वर्णन किया है, जो कि पढ़ी-लिखी होने के बावजूद भी प्रोफेसर की झूठी बातों में आ जाती है, और उसके द्वारा छले जाने के भय से उसकी हत्या करके जेल चली जाती है। मार्कण्डेय ने कितनी खूबसूरती से यह दिखाया है कि एक अनपढ़ छोटे गाँव की स्त्री किस प्रकार से अपनी जिंदगी संवारती है एक प्रोफेसर से ब्याह कर वहीं दूसरी ओर शहरी वातावरण में पली बडे़ घर की पढ़ी-लिखी लड़की अपने ही हाथों अपनी जिन्दगी को कलंकित कर लेती है। इसी प्रकार से हम देखते हैं, कि मार्कण्डेय एक ऐसे कहानीकार हैं जिन्होंने अलग-अलग रूप में नारी चित्रण को अपनी कहानियों का विषय बनाया। मार्कण्डेय की नजरों में स्त्रियों की अहम भूमिका दिखाई पड़ती है, तभी तो वे स्त्रियों के अलग-अलग चरित्रों का वर्णन करते हैं।
डॉ0 नामवर  सिंह के अनुसार – ‘‘गाँव की जिन्दगी पर कहानियाँ पहले भी लिखी जाती थी, लेकिन जिस आत्मीयता के दर्शन मार्कण्डेय की कहानियों में होते हैं, वह अन्यत्र दुर्लभ है।’

वास्तव  में कथाकार मार्कण्डेय ने अपनी कहानियों में ग्रामीण  वातावरण, कृषक समस्या, नारी-चित्रण पर कुछ अधिक ही लिखा है। मार्कण्डेय ने अपने लघु उपन्यास ‘सेमल के फूल’ में नीलिमा और सुमंगल की प्रेम कहानी दर्शायी है, जिसकी नायिका नीलिमा जो कि एक नारी पात्र है को विशेष रूप प्रदान किया है। इसी प्रकार ‘अग्निबीज’ उपन्यास में भी उन्होंने श्यामा के अनचाहे विवाह की व्यथा को चित्रित किया है। मार्कण्डेय अपने कथा साहित्य एवं उपन्यास में लाचार स्त्री की दुःखभरी व्यथा को चित्रित करते हैं। 
मार्कण्डेय  के जो नारी पात्र है, वे अत्यन्त ही साहसी, विद्रोही, गतिशील तथा क्रान्तिकारी हैं। मार्कण्डेय के नारी पात्र इतने साहसी हैं कि वे अपने प्रेम का इजहार तक बिना संकोच के करती हैं। मार्कण्डेय ने नारी को श्रेष्ठता प्रदान करते हुये उसे अपनी कहानियों में उच्च स्थान दिया है। यही कारण है कि मार्कण्डेय की कहानियों में हमें कुछ अलग देखने, पढ़ने को मिलता है, वास्तव में मार्कण्डेय ने नारी पात्रों का चित्रण कर अपने उपन्यासों और कहानियों में  एक अलग ही रंग भर दिया है। 

हिमांगी हिन्दी में कवितायें लिखती हैं और इन दिनों महात्मा गांधी ग्रामोदय चित्रकूट विश्वविद्यालय सतना, मध्य प्रदेश से मार्कंडेय जी की रचनाओं पर शोध कार्य कर रही हैं। साथ ही महामति प्राणनाथ महाविद्यालय मऊ चित्रकूट, उत्तर प्रदेश में हिन्दी की अतिथि प्रवक्ता के रूप में अध्यापन कार्य कर रही हैं।

संपर्क-
द्वारा- श्री रजनी कान्त त्रिपाठी
थाने के सामने, बस स्टैंड 
मऊ, चित्रकूट
उत्तर प्रदेश
210209


ई-मेल : tripathihimangi@gmail.com

हिमांगी त्रिपाठी

हिमांगी त्रिपाठी
उत्तर  प्रदेश  के बुंदेलखंड अंचल  के सर्वाधिक्  पिछडे  जनपद 
चित्रकूट की हिमांगी ने अभी-अभी हिंदी से  एम ए किया है. साथ ही 
इन्होने  यू जी सी की नेट परीक्षा भी उत्तीर्ण की है. एक ऐसे रुढ़िवादी 
मानसिकता वाले जगह जहाँ लड़कियों को अपने मन से कुछ  भी सोचने -कहने-करने की आजादी नहीं है हिमांगी ने अपनी कविताओं के माध्यम  
से  कुछ कहने की हिमाकत की है. इनकी कविताओं में अभी
पर्याप्त अनगढ़पन है जैसाकि शुरू-शुरू में होना चाहिए. ‘किसलय’ के अंतर्गत हम ऐसे  रचनाकारों को प्रकाशित  करेंगे  जिन्होंने  रचना की दुनिया में पहला कदम रखा है. इसी क्रम में प्रस्तुत है हिमांगी की कविता ‘मेरी जिन्दगी’ जिसमें इस आंचलिक स्त्री जीवन की एक सोच, जिसमें वह तमाम जकड़बंदियों से घिरी है  दिखाई  पड़ेगी. जिन्दगी जो उसकी हो कर भी वास्तव में उसकी नहीं है. 
संपर्क- द्वारा श्री रजनी कान्त त्रिपाठी, थाने के सामने, बस स्टैंड, मऊ, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश २१०२०९
मेरी जिन्दगी        
इस जिन्दगी में
अब कोई किनारा नहीं रहा 
कोई अपना नहीं रहा .
जिन्दगी ने  कुछ ऐसे छला
कि जीने का आसरा ना रहा.
आखिर इस जिन्दगी में
कहाँ है मेरी जिन्दगी का नक्शा 
कहाँ है मेरे जीने की वजह 
कोई हो सके तो बतलाओ मुझे
क्या  है सूत्र जिन्दगी जीने का.
बीती अपनी ही जिन्दगी कुछ इस तरह
की खुद अपने को ही पता ना रहा
अपनों पर करती रही भरोसा हर पल
मगर अपनों ने ही बार बार मुझको छला.
जिन्दगी अब तुम पर भी कोई भरोसा ना रहा.