योहान वोल्फ़गांग फॉन गोएथे की कविताएँ (अनुवाद – प्रतिभा उपाध्याय)

Johann Wolfgang Von Goethe

र्मन कवि योहान वोल्फ़गांग फॉन गोएथे का जन्म 28 अगस्त 1749 को फ्रेंकफर्ट के एक संपन्न परिवार में हुआ योहान वोल्फ़गांग उनका नाम है और फॉन गोएथे सम्राट द्वारा दिया गया Title of Nobilityहै गोएथे को जर्मन भाषा का शेक्सपीयर माना जाता है वे बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व के धनी थे कवि होने के अतिरक्त गोएथे नाटककार, उपन्यासकार, वैज्ञानिक, कलाकार, दार्शनिक और कानूनविद भी थे इसके साथ ही वे बहुभाषाविद भी थे ग्रीक, लैटिन, फ्रेंच, अंग्रेजी और इतालवी पर उनका असाधारण अधिकार था

गोएथे ने अपना प्रसिद्द नाटक फाउस्ट 24 वर्ष की आयु में लिखना प्रारम्भ कर दिया था, जिसे उन्होंने अपनी मृत्यु (22 मार्च 1832) से कुछ समय पूर्व ही पूरा किया यह नाटक दो भागों में है, इस नाटक का दूसरा भाग उनकी मृत्योपरांत प्रकाशित हुआ गोएथे ने यह नाटक कालिदास के अभिज्ञानशाकुंतलम नाटक का William Jones द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद पढने के बाद लिखा गोएथे इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने “नाटक में प्रस्तावना” को अपने इस नाटक में शामिल किया, जो जर्मन नाटकों के क्षेत्र में नई संकल्पना थी
गोएथे को सबसे पहले प्रसिद्धि अपने उपन्यास Die Leiden des jungen Werthers (युवा वेर्थर का दुःख) से मिली, जिसे उन्होंने 25 वर्ष की आयु में लिखा  लिखते ही इस उपन्यास का कई भाषाओं में अनुवाद हो गया इस उपन्यास के बारे में माना जाता है कि यह गोएथे की अपनी प्रेम दास्तां है इस उपन्यास का युवाओं पर इतना गहरा असर पड़ा कि दशकों तक प्रेम में असफल भावुक युवाओं ने इसे पढने के बाद आत्महत्या कर ली जिसके लिए गोएथे की काफी आलोचना भी हुई बाद में गोएथे ने स्वीकार किया कि स्वयं को बचाने के लिए उन्होंने अपने नायक की उपन्यास में हत्या कर दी अज्ञेय के “शेखर के एक जीवनी” पर भी इस उपन्यास की छाप मानी जाती है
गोएथे ने चार उपन्यास, लगभग 10000 पत्र, 3000 चित्र और अनेक कवितायेँ लिखीं मोत्सार्ट (Mozart), बीथोविन, शूबर्ट माहलर जैसे हर प्रसिद्ध जर्मन संगीतकार ने उनकी कविताओं को संगीतबद्ध किया है कवि के रूप में अपनी सफलता और प्रभाव के बावजूद गोएथे ने अपनी साहित्यिक उपलब्धियों पर कभी गर्व महसूस नहीं किया उनका मानना था कि दार्शनिक और वैज्ञानिक रूप में किया गया उनका काम ही उनकी असली विरासत हैं, विशेषकर 1810 में प्रकाशित उनकी कृति “Zur Farbenlehre” (=रंगों की परिकल्पना).
गोएथे जर्मन रोमांटिक युग Sturm und Drang के एक प्रमुख स्तम्भ हैं उनके एकाधिक स्त्रियों से प्रेम सम्बन्ध रहे, जो उनके चरित्र निर्माण में भागीदार रही हैं आज उनके जन्मदिन पर गोएथे की चुनिन्दा प्रेम कविताओं के जर्मन से हिन्दी अनुवाद का मैंने एक प्रयास किया है
– प्रतिभा उपाध्याय 

योहान वोल्फ़गांग फॉन गोएथे की कविताएँ
(अनुवाद – प्रतिभा उपाध्याय)

प्रिये के पास

तुम्हारे बारे में सोचता हूँ मैं, जब चमकता है सूरज
समुद्र से विकीर्ण होता हुआ
तुम्हारे बारे में सोचता हूँ मैं, जब चाँद की झिलमिलाहट  
दिखाई होती है झरनों में।
देखता हूँ तुम्हें मैं, जब दूर सड़क पर
उठती है धूल गहरी रात में,
जब संकरे पुल पर
कांपने लगता है पथिक।
सुनता हूँ तुम्हें मैं, जब एक क्षीण गर्जन के साथ
उमड़ पड़ती है लहर।
शांत कुञ्ज में अक्सर जाता हूँ मैं सुनने के लिए,
जब सब खामोश होता है।
तुम्हारे साथ हूँ मैं;
चाहे तुम कितना भी दूर हो,
मेरे नजदीक ही हो तुम !
सूरज, डूब रहा है
जल्द ही सितारे जगमगायेंगे मेरे ऊपर।
अरे, केवल तुम यहाँ हो!

नया प्यार नया जीवन
दिल, मेरा दिल, क्या कहना है इसे?
तुम इतना क्यों कसमसा रहे हो?
क्या ही अजीब है नया जीवन!
नहीं पहचानता मैं तुम्हें अधिक
चला गया सब कुछ, करते थे प्यार जिसे तुम
चला गया सब, दुखी क्यों हो रहे हो तुम?
चली गई तुम्हारी लगन और तुम्हारा अमन
ओह! कैसे बच निकले तुम उससे!
आकर्षित करता है नवयौवन तुम्हें
यह सुन्दर रूप
विश्वास और दया से परिपूर्ण यह दृष्टि
अनंत शक्ति से भरी?
मैं बचाना चाहता हूँ स्वयं को इससे ज़ल्दी ही
मुझे धमकाती है यह , उसे मुक्त करती है
बाहर ले जाती है मुझे एकदम
ओह! मेरा पथ उसी की ओर वापस!
और यह जादुई धागा,
इसे नहीं किया जा सकता अलग
बांधे रखता है यह प्रेम को, लापरवाह लड़कियों को
अनायास ही जकड रखा है इसने मुझे कस कर
जीना है मुझे इसके जादुई चक्र में
अब केवल उसके ही तरीके से
परिवर्तन, ओह, कितना विशाल!
प्यार! प्यार! जाने दो मुझे!

वर्तमान

हर चीज़ करती है तुम्हारी ही तारीफ़
उदित होता है दैदीप्यमान सूर्य
अनुसरण करोगी शीघ्र ही तुम, ऎसी आशा करता हूँ मैंI
जब कदम रखती हो उपवन में तुम
तब होती हो गुलाबों का गुलाब
साथ ही कुमुदनियों की कुमुदनीI
जब हिलती हो तुम नृत्य में
तो हिलते हैं तारे सारे
तुम्हारे साथ और तुम्हारे चारों ओरI
रात! और तब यह रात ही हो  
चंद्रमा को दे रही हो मात तुम चमक में
प्यारी रोमांचक चमकI
रोमांचक और प्यारी हो तुम
और फूल चाँद और तारे,
सूर्य, पूजा करते हैं केवल तुम्हारीI
सूर्य! ऎसी बनो तुम मेरे लिए भी
सर्जक आलीशान दिनों की
यही है जीवन और अमरत्व !!

कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ, जानता नहीं मैं  
कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ, मैं नहीं जानता।
देखता हूँ केवल एक बार तुम्हारा चेहरा  
,
देखता हूँ तुम्हारी आँखों में केवल एकबार
आज़ाद हो जाता है मेरा दिल हर दर्द से
भगवान जानता है , कैसी बीत रही है मुझ पर
कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ, मैं नहीं जानता।
 
तड़प
नहीं होगा यह आखरी आंसू,
जो चमकते हुए दिल को भारी कर देता है
जो अकथनीय नए दर्द से
अपने बढे हुए दर्द को शांत करता हैI
ओ, तुम हमेशा वहां रहती हो
मुझे शाश्वत प्रेम का अहसास कराने के लिए 
और चाहती हो दर्द भी बना रहे
नसों और शिराओं को खरोंचने के लिएI   
काश! एक बार भी मैं,
तुमसे भरा जा सकूँ, ओ अनन्त,
ओह, यह लंबी, गहरी पीड़ा,
कैसे रह लेती है इस धरा पर!

केवल वह, जो तड़प जानता है
केवल वह, जो तड़प जानता है, 
वही जानता है कि कितना तडप रहा हूँ  मैं!
अकेला और अलग थलग,
सारे आनंद से दूर,
क्षितिज को देखता हुआ 
हर तरफ.
 
ओह! जो प्यार करता है मुझे और जानता है, 
सुदूर है वह.
चकरा रहा हूँ मैं
जल रही हैं अंतडियां मेरी.
केवल वह, जो तड़प जानता है, 
वही जानता है कि कितना तडप रहा हूँ मैं!
(चयन और अनुवाद – प्रतिभा उपाध्याय)

पाब्लो नेरूदा की चुनिंदा कवितायेँ ( मूल स्पेनिश से अनुवाद- प्रतिभा उपाध्याय)


नेरुदा
 

    
जो कविता को राजनीति से अलग करना चाहते हैं, वे कविता के दुश्मन हैंI”— का उद्घोष करने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता चिली मेँ जन्मे स्पेनिश भाषा के लेखक पाब्लो नेरूदा (July 12, 1904 – September 23, 1973) का आज जन्मदिन हैI वह एक निबन्धकार, नाटककार , उपन्यासकार, कवि एवं अनुवादक थेI विश्व मेँ सर्वाधिक पढ़े जाने वाले कवियों मेँ से वह एक हैंI उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “Veintepoemas de amor y unacancióndesesperada (प्रेम की बीस कवितायेँ और निराशा का एक गीत) की एक मिलियन से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं और दो दर्जन से अधिक भाषाओं मेँ इसका अनुवाद हो चुका हैI
नेरूदा ने दस वर्ष की आयु से कविताएँ लिखना प्रारम्भ कर दिया थाI उन की कविताएं आम जनता के संघर्ष का गान हैंI अपने संस्मरण मेँ उन्होंने लिखा है  “प्यार करने और गाने के लिए मुझे बहुत कष्ट उठाना पड़ा, संघर्ष करना पड़ाI जीत और हार मेरे संसार का हिस्सा हैंI मैंने रोटी और खून का स्वाद चखा हैI एक कवि को इससे अधिक और क्या चाहिए हो सकता है? मेरे सारे चयन, सारे आंसू, मेरा चुंबन, मेरा अकेलापन, सब मेरी कविता में शामिल हैंI मेरी कविता ने मेरे हर सपने को ताक़त दीI मैं अपनी कविता के लिए जिया हूँ और मेरी कविता ने हर उस चीज को पाला पोसा है, जिसके लिए मैंने संघर्ष किया हैI”
नेरूदा एक महान कवि थे, जिन्होंने आत्मालोचन एवं आत्म-दर्शन को अपने लेखन में अभिव्यक्ति दीI नेरुदा को आज उनकी कविता की शक्ति के लिए, फासीवाद और उत्पीड़न के खिलाफ अपने विरोध प्रदर्शन के लिए और चिली की जनता की आवाज देने के लिए याद किया जाता है
आज पाब्लो नेरुदा का जन्मदिन है। नेरुदा को उनके जन्मदिन पर नमन करते हुए आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं उन की कुछ कवितायें। मूल स्पेनिश से अनुवाद किया है प्रतिभा उपाध्याय ने। तो आइये आज पढ़ते हैं नेरुदा की कवितायें।  
नेरुदा की कविताएँ 

(मूल स्पेनिश से अनुवाद – प्रतिभा उपाध्याय)
कविता


और गुज़र गई वह उम्र…. कविता

मुझे खोजने आई . नहीं पता मुझे

कहाँ से आई – शीत से या नदी से

नहीं पता कैसे और कब

नहीं, नहीं थीं वे आवाज़ें

नहीं थे शब्द, न ही थी खामोशी

लेकिन बुला रही थी मुझे एक सड़क से

रात के छोर से

उतावली से सबके बीच में से

हिंसक आग के बीच से

या फिर लौटते हुए एकाकी

उसका कोई चेहरा न था

और उसने मुझे छू लियाI

नहीं जानता था मैँ कि क्या कहूँ

कोई नहीं जानता था मेरा चेहरा

नाम ले कर पुकारने के लिए

आँखों से अंधा था मैं

और किसी ने वार कर दिया मेरी आत्मा पर

ज्वर या विस्मृत उड़ान लिए

चला जा रहा था मैं अकेला

उस आग की गूढ़ लिपि समझते हुए

और लिख डाली मैंने पहली बेकरार पंक्ति

बेकरार, अर्थविहीन, एकदम बकवास

पूरी जानकारी दी उसकी, जिसके बारे में कुछ नहीं जानता

और जल्दी ही देखा मैंने स्वर्ग

ज़ुदा और खुला हुआ,

सितारे,

कम्पित फसलें,

छिद्रित छाया,

जो छलनी हुई थी

तीरों से, अग्नि और पुष्पों से

वक्र रात, ब्रह्माण्डI

और मैं, बहुत छोटा प्राणी

शून्यता के नशे में 

तारों सा झिलमिलाता

समानता की ओर

रहस्यमयी छवि की ओर

उठाता रहा दुःख,

नरक का

लगाया चक्कर मैंने, सितारों के साथ

मेरा दिल फट पड़ा हवा मेँII

मर जाता है वह धीरे-धीरे
मर जाता है वह धीरे-धीरे
करता नहीं जो कोई यात्रा 
पढ़ता नहीं जो कुछ भी 
सुनता नहीं जो संगीत
हँस नहीं सकता जो खुद पर


मर जाता है वह धीरे-धीरे
नष्ट कर देता है जो खुद अपना प्यार
छोड़ देता है जो मदद करनाI

मर जाता है वह धीरे-धीरे
बन जाता है जो आदतों का दास 
चलते हुए रोज़ एक ही लीक पर 
बदलता नहीं जो अपनी दिनचर्या 
नहीं उठाता जोख़िम जो पहनने का नया रंग 
नहीं करता जो बात अजनबियों सेI

मर जाता है वह धीरे-धीरे
करता है जो नफ़रत जुनून से 
और उसके अशांत जज्बातों से 
उनसे जो लौटाते हैं चमक आँखों में 
और बचाते हैं अभागे ह्रदय कोI

मर जाता है वह धीरे-धीरे
बदलता नहीं जो जीवन का रास्ता 
असंतुष्ट होने पर भी अपने काम या प्रेम से 
उठाता नहीं जो जोख़िम
अनिश्चित के लिए निश्चित का 
भागता नहीं जो ख़्वाबों के पीछे 
नहीं है अनुमति जिसे भागने की 
व्यावहारिक हिदायतों से 
ज़िंदगी में कम से कम एक बारI


जियो आज जीवन जियो!
रचो आज!
उठाओ आज जोख़िम!
मत मरने दो खुद को आज धीरे-धीरे!
मत भूलो तुम खुश रहना!!

सवालों की किताब- 72

यदि मीठी हैं सारी नदियाँ
तो कहाँ से पाता है समुद्र नमक?

कैसे जानते हैं मौसम
कि बदलनी है उन्हें कमीज़?

क्यों इतने धीरे से आती हैं सर्दियां
और उसके बाद इतना कम्पन?

और कैसे जानती हैं जड़ें
कि उन्हें पहुंचना है प्रकाश तक?

और बाद में स्वागत करती हैं हवा का
इतने फूलों और रंगों से?

हमेशा एक सा ही रहता है बसंत
जो दुहराता है अपनी भूमिकाI

मुझ से एक दिन के लिए भी दूर मत जाओ
मत जाओ दूर मुझ से एक दिन के लिए भी, क्योंकि

क्योंकि — नहीं जानता कि कैसे कहूँ मैं, दिन है लंबा

और करता रहूँगा मैं इंतज़ार तुम्हारा खाली स्टेशन पर

जब किसी स्टेशन पर आ कर खड़ी होंगी रेलगाड़ियाँI

मत जाओ एक घंटे के लिए भी, क्योंकि तब

ऐसे समय में लग जाता है अम्बार चिंताओं का,

संभव है घर की तलाश में मंडराता हुआ धुआँ

आ जाए दम घोटने के लिए, टूटे हुए मेरे दिल का,

अरे, कहीं बिगड़ न जाए रूप तुम्हारा रेत में

ओ, कहीं लौट न जाएं पलकें तुम्हारी शून्य में

नहीं जाना एक पल के लिए भी, प्रिये;

क्योंकि इसी पल में चली गई होगी तुम दूर इतना

कि पार करूंगा मैं सारी दुनिया, आरज़ू करते हुए

कि वापस आ जाओगी तुम अथवा छोड़ दोगी मुझे मरने के लिए?
मंत्र-मुग्ध प्रकाश का स्तोत्र
पेड़ों के प्रकाश के नीचे
गिरा दी गई है ऊंचे आकाश से,
रोशनी
हरे रंग की
शाखाओं की जाली की तरह ,
जो चमकती है
हर पत्ते पर,
नीचे बहती स्वच्छ
सफेद रेत की तरह।
झींगुर ऊंचा उठ रहा है
अपने आरा घर से
खोखलेपन के ऊपरI
विश्व है
पानी का डबाडब भरा
एक गिलास II
आज की रात मैं सबसे दुखद कविता लिख सकता हूँ
आज की रात लिख सकता हूँ मैं सब से दुखद कविता

उदाहरण के लिए: मैं लिख सकता हूँ – रात चूर-चूर हो गई है

घना अन्धेरा है सुदूर क्षितिज में काँप रहे हैं तारे

हवा रात को आकाश में विचरण कर रही है और गा रही है

आज की रात लिख सकता हूँ मैं सब से दुखद कविता

मैं उसे प्यार करता था कभी-कभी वह भी मुझे प्यार करती थी

आज जैसी रातों में मैंने उसे अपने आगोश में लिया

काई बार चुम्बन किया मैंने उसका अनन्त आकाश तले

आज की रात लिख सकता हूँ मैं सबसे दुखद कविता

वह मेरे पास नहीं – यह सोचना भी ऐसा है जैसे मैंने उसे खो दिया हो

रातें उजाड़ हो गई हैं जब से वह चली गई है

कविता आत्मा पर ऐसे गिर रही है जैसे घास पर ओस

कितना महत्वपूर्ण है कि मेरा प्यार उसकी रक्षा नहीं कर सका

रात बिखर गई है और वह मेरे पास नहीं है

यही सब है – दूर कोई गा रहा है बहुत दूर

मेरी आत्मा संतृप्त नहीं है, मैंने उसे खो दिया है

उस तक पहुंचने के लिए मेरी आँखें उसे खोज रही हैं

मेरा दिल उसकी खोज में तड़प रहा है और वह मेरे पास नहीं है

उसी रात ने बना दिया है पेड़ों को सफ़ेद

हम भी वह नहीं रहे जो पहले थे

अब नहीं करता प्यार मैं उसे, किन्तु कितना चाहता था मैं उसे

मेरी आवाज़ खोजती थी हवा को उसके कान तक पहुँचने के लिए

लेकिन वह शायद अब दूसरी है, दूसरी ही है जैसे थी मेरे चुम्बन से पहले

उसकी आवाज़ उसका उज्ज्वल शरीर उसकी विशाल आँखें

अब मुझे प्यारी नहीं, सच है यह, लेकिन पहले शायद मैं उसे प्यार करता था

प्यार जितना कम है,  विस्मृति उतनी ही लम्बी

चूंकि ऎसी रातों में लेता था मैं उसे अपने आगोश में

मेरी आत्मा संतृप्त है , मैंने उसे खो दिया है

अगरचे आखिरी दर्द हो यह, जो उसने मुझे दिया

तो हो यह आखिरी कविता जो लिख रहा हूँ मैं उसके लिएI
अनुवादक :  प्रतिभा उपाध्याय
(Diploma in Spanish)

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की प्रेम कविताएँ (मूल जर्मन से अनुवाद – प्रतिभा उपाध्याय)

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट मेरे प्रिय कवियों में से एक हैं। ब्रेष्ट का समय दुनिया के लिए एक त्रासद समय था। अपनी रचनाओं के द्वारा वे उस त्रासदी से संघर्ष करते हुए लोगों को उत्प्रेरित करते रहे। एक बेहतरीन नाटककार होने के साथ-साथ वे एक बेजोड़ कवि भी थे। खुद उनकी कविताएँ बता देती हैं कि ब्रेष्ट की सोच का वितान कितना व्यापक था। मैंने व्यक्तिगत रूप से प्रतिभा उपाध्याय से ब्रेष्ट की प्रेम कविताएँ भेजने का आग्रह किया। आज पहली बार पर हम प्रस्तुत कर रहे हैं ब्रेष्ट की कुछ प्रेम कविताएँ, जिनका अनुवाद किया है प्रतिभा उपाध्याय ने।
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की प्रेम कविताएँ 
मूल जर्मन से अनुवाद – प्रतिभा उपाध्याय                     
                   
बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की ख्याति एक नाटककार के रूप में है, किन्तु मूलत: वह एक बहुप्रज्ञ सृजनशील कवि थे। उनके नाटक भी उनकी काव्य प्रतिभ से अछूते नहीं हैं। उन्होंने लगभग 2000 कवितायेँ लिखी हैं। उनकी पहली कविता 16 वर्ष की आयु में प्रकाशित हुई। डेविड कंटेस्टाइन और टॉम कूह्न के शब्दों में ब्रेष्ट प्रेमी और प्रेम कवि हैं, जिन्होंने उथल पुथल के दौर में आशा और विश्वास बनाए रखने के हताश संघर्ष और सक्रिय प्रेम को मूर्त रूप में ढाला है। 
गोएथे की भाँति ब्रेष्ट भी ताउम्र कमोबेश प्यार में रहे और इस प्यार को उन्होंने अपनी कविताओं में अभिव्यक्त किया, उस पर चर्चा की एवं उसके विविध रंगों रूपों को आश्चर्यजनक विविधता के साथ अभिनीत किया। उनकी प्रेम कविताओं में करुणा और सहानुभूति, आवेग और कामुकता की तड़प है। उनकी कई प्रेम-कविताएं तो अपने खुलेपन के कारण जर्मनी में प्रकाशित नहीं हो पाई थीं।
उनकी प्रेम कविताओं को सहजता से प्रेम कविताओं की मौत करार दिया जाता है, क्यों की ब्रेष्ट जिस तरह से प्यार के परिवर्तन को लेकर चिंतित हैं, वह उसका वह रूप है जिसमें पहले मनुष्य प्रेम को परिभाषित करता है और फिर उसी प्यार से स्वयं बर्बाद हो जाता हैI  उनकी प्रेम-कविताएं बाजारू मानसिकता व वैचारिक कट्टरता का प्रतिरोध करती हैं।

मैंने तुम्हें इतना प्यार कभी नहीं किया
मैंने तुम्हें इतना प्यार कभी नहीं किया, मेरी प्रिय
जितना उस दिन जब मैं शाम को तुमसे दूर चला गया
जंगल मुझे निगलने लगा, घना जंगल, मेरी प्रिय
जिसके ऊपर पश्चिम में कांतिहीन तारे खड़े थेI
मैं ज़रा भी नहीं मुस्कुराया, मेरी प्रिय
खेलते हुए मैं अँधेरे भाग्य के करीब पहुँच गया
जबकि चेहरे मेरे पीछे
धीरे धीरे विवर्ण हो रहे थे घने जंगल की शाम मेंI
सब कुछ भव्य था उस निराली शाम को, मेरी प्रिय
न ही कभी इसके बाद और न ही कभी इसके पहले
बेशक मेरे पास कुछ नहीं है बड़े पक्षियों के अलावा
और आकुल शामें हैं घने आकाश मेंII
दिन और रात पढ़ने हेतु
जिसे मैं प्यार करता हूँ
उसने कहा मुझसे
कि जरूरत है उसे मेरी।
इसी कारण
मैं अच्छी तरह से देखभाल करता हूँ अपनी
सतर्क रहता हूँ कि  मैं कहाँ जा रहा हूँ और
डरता हूँ कि बारिश की एक बूंद
मुझे मौत के घात उतार सकती है।
प्रेमगीत
जब मैं तुमसे दूर चला गया
बहुत दूर,
आज देखा मैंने, मानो मैंने देखना शुरू किया हो
हर्षित बहुरंगे लोग
और उसी शाम से हर समय
जानता है पहले से, कि मेरा अभिप्राय क्या है
मेरा मुखड़ा सुन्दर है
और पैर कुशल
हरा है, चूंकि मुझे ऐसा महसूस होता है
पेड़ झाड़ी और घास का मैदान
और पानी अच्छा ठंडा
जब यह मेरे ऊपर डाला जाता हैII
प्रेमगीत –II
जब तुम मुझे जिंदादिल बनाते हो
तब कभी कभी सोचता हूँ मैं
अब मर सकता हूँ मैं
फिर खुश होता हूँ मैं
अपने अंत तक
यदि तुम उस समय बूढ़े हो
और मेरे बारे में सोचते हो
आज की तरह ही सोचता हूँ मैं
कि तुम्हारा एक प्रियतम है
जो अभी भी जवान है II
प्रेमगीत-III
 
सात गुलाबों की झाड़ी है
छह हवा के हैं
किन्तु एक शेष रहती है कि
एक और को पा लिया है मैंने प्यार करने के लिएI  
तुम्हें सात बार पुकारूँगा मै
छह बार तक ज़ारी रहेगा यह
लेकिन सातवीं बार, वादा’
यही एक शब्द समझ आता हैII

मैं उसके साथ जाना चाहता हूँ, जिसे मैं प्यार करता हूँ

साथ जाना चाहता हूँ मैं उसके, जिसे प्यार करता हूँ मैं 
गिनना नहीं चाहता मैं कि इसकी कीमत क्या है
यह भी सोचना नहीं चाहता मैं कि क्या यह अच्छा है
जानना नहीं चाहता मैं कि वह मुझे प्यार करता है

मैं उसके साथ जाना चाहता हूँ, जिसे मैं प्यार करता हूँ II

 

विदाई (Der Abschied)

हम आलिंगन करते हैं
मैं पहनता हूँ कीमती कपडे
तुम पकड़ती हो बांह
आलिंगन तेज़ है
तुम खाने के लिए आमंत्रित हो
मेरे लिए बहुत नियम कानून हैं
हम बात करते हैं मौसम और अपनी
स्थाई मित्रता के बारे में
इसके अलावा कुछ भी
बहुत कटु होगाII
कमज़ोरियां
कमजोरियाँ तुम्हारी थीं नहीं कोई
मेरी थी बस एक
मैं प्यार करता था II

नववर्ष पर जर्मन भाषा के कवियों की चुनिन्दा कवितायेँ

नव वर्ष पर जर्मन भाषा के कुछ कवियों की चुनिन्दा कविताएँ प्रतिभा उपाध्याय ने अनुवाद कर पहली बार के लिए उपलब्ध कराया था लेकिन कुछ व्यक्तिगत एवं तकनीकी दिक्कतों के चलते मैं इसे नव वर्ष के आरम्भ में नहीं लगा पाया था. लेकिन हमारे यहाँ तो पूरे जनवरी नव वर्ष की बधाईयाँ देने का चलन रहा है. इसी क्रम में इन कविताओं को हम पहली बार पर प्रस्तुत कर रहे हैं . तो आ इ ए पढ़ते हैं  जर्मन भाषा के कुछ कवियों की चुनिन्दा कविताएँ. जिनका खूबसूरत अनुवाद किया है प्रतिभा उपाध्याय ने .

नववर्ष पर जर्मन भाषा के कवियों की चुनिन्दा कविताएँ 

अनुवाद : प्रतिभा उपाध्याय

नववर्ष की शुभकामनाएं
पेटर रोज़ेग्ग (Peter Rosegger)
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थोड़ी अधिक शान्ति और कम विवाद
थोड़ी अधिक दयालुता और कम द्वेष
थोड़ा अधिक प्यार और कम घृणा
थोड़ी अधिक सच्चाई हो – तो कुछ हो!
इतनी अधिक बेचैनी के बजाय थोड़ा चैन
हमेशा केवल ‘मैं’ के बजाय थोड़ा अधिक ‘तुम’
भय और लाचारी के बजाय थोड़ा सा साहस
और कार्य करने की शक्ति हो- तो अच्छा हो!
यातना और अँधेरे में थोड़ा सा अधिक प्रकाश
कोई प्रबल चाह नहीं, थोड़ा सा त्याग
और ढेर सारे फूल –जितनी देर तक हो सके, खिलें
केवल कब्र में नहीं, क्योंकि वहां वे बहुत देर से खिल रहे हैंI
हृदय की शांति ही ध्येय हो I
इससे बेहतर मुझे पता नहीं II
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नया साल
योहान वोल्फगांग फॉन गोएथे (Johann Wolfgang von Goethe)
नए साल में नई जिम्मेदारियां 
नई सुबह करती है आह्वान नए काम करने के लिए 
सतत कामना करता हूँ मैं एक सुखद कार्य, 
और हिम्मत और ताकत की, काम करने के लिए दिन और रात।

“नववर्ष गीत”
लुडविग आइशरोट (Ludwig Eichrodt)
बीत गया पुराना साल
शुभकामनाएँ देता हूँ नए साल के लिए
जो बीते साल नहीं मिला 
वह सब मिले तुम्हें नए साल मेंI
गिलास पूरा पकड़ता हूँ
सोख लेता हूँ उसे मैं और प्रार्थना करता हूँ
हर किसी के लिए उस सब की कामना करता हूँ मैं
जिसको वह स्वयं चाहता हैI
तुम लोगों के लिए वह सब चाहता हूँ मैं
जो देता है तुम्हें संतोष, और पसंद है तुम्हें
और यह भी कि तुम्हारी इच्छा से
न टकराए मेरी कोई इच्छा.
इस तरह प्रवेश करें हम नए साल में
विश्वासपूर्ण हौसले के साथ
और जो कुछ भी बीते साल में नहीं हुआ
पूरा हो वह नए साल मेंII
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 (इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेंद्र जी की हैं.)