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नेरुदा |
“जो कविता को राजनीति से अलग करना चाहते हैं, वे कविता के दुश्मन हैंI”— का उद्घोष करने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता चिली मेँ जन्मे स्पेनिश भाषा के लेखक पाब्लो नेरूदा (July 12, 1904 – September 23, 1973) का आज जन्मदिन हैI वह एक निबन्धकार, नाटककार , उपन्यासकार, कवि एवं अनुवादक थेI विश्व मेँ सर्वाधिक पढ़े जाने वाले कवियों मेँ से वह एक हैंI उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “Veintepoemas de amor y unacancióndesesperada” (प्रेम की बीस कवितायेँ और निराशा का एक गीत) की एक मिलियन से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं और दो दर्जन से अधिक भाषाओं मेँ इसका अनुवाद हो चुका हैI
नेरूदा ने दस वर्ष की आयु से कविताएँ लिखना प्रारम्भ कर दिया थाI उन की कविताएं आम जनता के संघर्ष का गान हैंI अपने संस्मरण मेँ उन्होंने लिखा है “प्यार करने और गाने के लिए मुझे बहुत कष्ट उठाना पड़ा, संघर्ष करना पड़ाI जीत और हार मेरे संसार का हिस्सा हैंI मैंने रोटी और खून का स्वाद चखा हैI एक कवि को इससे अधिक और क्या चाहिए हो सकता है? मेरे सारे चयन, सारे आंसू, मेरा चुंबन, मेरा अकेलापन, सब मेरी कविता में शामिल हैंI मेरी कविता ने मेरे हर सपने को ताक़त दीI मैं अपनी कविता के लिए जिया हूँ और मेरी कविता ने हर उस चीज को पाला पोसा है, जिसके लिए मैंने संघर्ष किया हैI”
नेरूदा एक महान कवि थे, जिन्होंने आत्मालोचन एवं आत्म-दर्शन को अपने लेखन में अभिव्यक्ति दीI नेरुदा को आज उनकी कविता की शक्ति के लिए, फासीवाद और उत्पीड़न के खिलाफ अपने विरोध प्रदर्शन के लिए और चिली की जनता की आवाज देने के लिए याद किया जाता है।
आज पाब्लो नेरुदा का जन्मदिन है। नेरुदा को उनके जन्मदिन पर नमन करते हुए आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं उन की कुछ कवितायें। मूल स्पेनिश से अनुवाद किया है प्रतिभा उपाध्याय ने। तो आइये आज पढ़ते हैं नेरुदा की कवितायें।
नेरुदा की कविताएँ
(मूल स्पेनिश से अनुवाद – प्रतिभा उपाध्याय)
कविता
और गुज़र गई वह उम्र…. कविता
मुझे खोजने आई . नहीं पता मुझे
कहाँ से आई – शीत से या नदी से
नहीं पता कैसे और कब
नहीं, नहीं थीं वे आवाज़ें
नहीं थे शब्द, न ही थी खामोशी
लेकिन बुला रही थी मुझे एक सड़क से
रात के छोर से
उतावली से सबके बीच में से
हिंसक आग के बीच से
या फिर लौटते हुए एकाकी
उसका कोई चेहरा न था
और उसने मुझे छू लियाI
नहीं जानता था मैँ कि क्या कहूँ
कोई नहीं जानता था मेरा चेहरा
नाम ले कर पुकारने के लिए
आँखों से अंधा था मैं
और किसी ने वार कर दिया मेरी आत्मा पर
ज्वर या विस्मृत उड़ान लिए
चला जा रहा था मैं अकेला
उस आग की गूढ़ लिपि समझते हुए
और लिख डाली मैंने पहली बेकरार पंक्ति
बेकरार, अर्थविहीन, एकदम बकवास
पूरी जानकारी दी उसकी, जिसके बारे में कुछ नहीं जानता
और जल्दी ही देखा मैंने स्वर्ग
ज़ुदा और खुला हुआ,
सितारे,
कम्पित फसलें,
छिद्रित छाया,
जो छलनी हुई थी
तीरों से, अग्नि और पुष्पों से
वक्र रात, ब्रह्माण्डI
और मैं, बहुत छोटा प्राणी
शून्यता के नशे में
तारों सा झिलमिलाता
समानता की ओर
रहस्यमयी छवि की ओर
उठाता रहा दुःख,
नरक का
लगाया चक्कर मैंने, सितारों के साथ
मेरा दिल फट पड़ा हवा मेँII
मर जाता है वह धीरे-धीरे
मर जाता है वह धीरे-धीरे
करता नहीं जो कोई यात्रा
पढ़ता नहीं जो कुछ भी
सुनता नहीं जो संगीत
हँस नहीं सकता जो खुद पर
मर जाता है वह धीरे-धीरे
नष्ट कर देता है जो खुद अपना प्यार
छोड़ देता है जो मदद करनाI
मर जाता है वह धीरे-धीरे
बन जाता है जो आदतों का दास
चलते हुए रोज़ एक ही लीक पर
बदलता नहीं जो अपनी दिनचर्या
नहीं उठाता जोख़िम जो पहनने का नया रंग
नहीं करता जो बात अजनबियों सेI
मर जाता है वह धीरे-धीरे
करता है जो नफ़रत जुनून से
और उसके अशांत जज्बातों से
उनसे जो लौटाते हैं चमक आँखों में
और बचाते हैं अभागे ह्रदय कोI
मर जाता है वह धीरे-धीरे
बदलता नहीं जो जीवन का रास्ता
असंतुष्ट होने पर भी अपने काम या प्रेम से
उठाता नहीं जो जोख़िम
अनिश्चित के लिए निश्चित का
भागता नहीं जो ख़्वाबों के पीछे
नहीं है अनुमति जिसे भागने की
व्यावहारिक हिदायतों से
ज़िंदगी में कम से कम एक बारI
जियो आज जीवन जियो!
रचो आज!
उठाओ आज जोख़िम!
मत मरने दो खुद को आज धीरे-धीरे!
मत भूलो तुम खुश रहना!!
यदि मीठी हैं सारी नदियाँ
तो कहाँ से पाता है समुद्र नमक?
कैसे जानते हैं मौसम
कि बदलनी है उन्हें कमीज़?
क्यों इतने धीरे से आती हैं सर्दियां
और उसके बाद इतना कम्पन?
और कैसे जानती हैं जड़ें
कि उन्हें पहुंचना है प्रकाश तक?
और बाद में स्वागत करती हैं हवा का
इतने फूलों और रंगों से?
हमेशा एक सा ही रहता है बसंत
जो दुहराता है अपनी भूमिकाI
मुझ से एक दिन के लिए भी दूर मत जाओ
मत जाओ दूर मुझ से एक दिन के लिए भी, क्योंकि
क्योंकि — नहीं जानता कि कैसे कहूँ मैं, दिन है लंबा
और करता रहूँगा मैं इंतज़ार तुम्हारा खाली स्टेशन पर
जब किसी स्टेशन पर आ कर खड़ी होंगी रेलगाड़ियाँI
मत जाओ एक घंटे के लिए भी, क्योंकि तब
ऐसे समय में लग जाता है अम्बार चिंताओं का,
संभव है घर की तलाश में मंडराता हुआ धुआँ
आ जाए दम घोटने के लिए, टूटे हुए मेरे दिल का,
अरे, कहीं बिगड़ न जाए रूप तुम्हारा रेत में
ओ, कहीं लौट न जाएं पलकें तुम्हारी शून्य में
नहीं जाना एक पल के लिए भी, प्रिये;
क्योंकि इसी पल में चली गई होगी तुम दूर इतना
कि पार करूंगा मैं सारी दुनिया, आरज़ू करते हुए
कि वापस आ जाओगी तुम अथवा छोड़ दोगी मुझे मरने के लिए?
मंत्र-मुग्ध प्रकाश का स्तोत्र
पेड़ों के प्रकाश के नीचे
गिरा दी गई है ऊंचे आकाश से,
रोशनी
हरे रंग की
शाखाओं की जाली की तरह ,
जो चमकती है
हर पत्ते पर,
नीचे बहती स्वच्छ
सफेद रेत की तरह।
झींगुर ऊंचा उठ रहा है
अपने आरा घर से
खोखलेपन के ऊपरI
विश्व है
पानी का डबाडब भरा
एक गिलास II
आज की रात मैं सबसे दुखद कविता लिख सकता हूँ
आज की रात लिख सकता हूँ मैं सब से दुखद कविता
उदाहरण के लिए: मैं लिख सकता हूँ – रात चूर-चूर हो गई है
घना अन्धेरा है सुदूर क्षितिज में काँप रहे हैं तारे
हवा रात को आकाश में विचरण कर रही है और गा रही है
आज की रात लिख सकता हूँ मैं सब से दुखद कविता
मैं उसे प्यार करता था कभी-कभी वह भी मुझे प्यार करती थी
आज जैसी रातों में मैंने उसे अपने आगोश में लिया
काई बार चुम्बन किया मैंने उसका अनन्त आकाश तले
आज की रात लिख सकता हूँ मैं सबसे दुखद कविता
वह मेरे पास नहीं – यह सोचना भी ऐसा है जैसे मैंने उसे खो दिया हो
रातें उजाड़ हो गई हैं जब से वह चली गई है
कविता आत्मा पर ऐसे गिर रही है जैसे घास पर ओस
कितना महत्वपूर्ण है कि मेरा प्यार उसकी रक्षा नहीं कर सका
रात बिखर गई है और वह मेरे पास नहीं है
यही सब है – दूर कोई गा रहा है बहुत दूर
मेरी आत्मा संतृप्त नहीं है, मैंने उसे खो दिया है
उस तक पहुंचने के लिए मेरी आँखें उसे खोज रही हैं
मेरा दिल उसकी खोज में तड़प रहा है और वह मेरे पास नहीं है
उसी रात ने बना दिया है पेड़ों को सफ़ेद
हम भी वह नहीं रहे जो पहले थे
अब नहीं करता प्यार मैं उसे, किन्तु कितना चाहता था मैं उसे
मेरी आवाज़ खोजती थी हवा को उसके कान तक पहुँचने के लिए
लेकिन वह शायद अब दूसरी है, दूसरी ही है जैसे थी मेरे चुम्बन से पहले
उसकी आवाज़ उसका उज्ज्वल शरीर उसकी विशाल आँखें
अब मुझे प्यारी नहीं, सच है यह, लेकिन पहले शायद मैं उसे प्यार करता था
प्यार जितना कम है, विस्मृति उतनी ही लम्बी
चूंकि ऎसी रातों में लेता था मैं उसे अपने आगोश में
मेरी आत्मा संतृप्त है , मैंने उसे खो दिया है
अगरचे आखिरी दर्द हो यह, जो उसने मुझे दिया
तो हो यह आखिरी कविता जो लिख रहा हूँ मैं उसके लिएI
अनुवादक : प्रतिभा उपाध्याय
(Diploma in Spanish)