प्रेमनन्दन की कविताएँ


प्रेम नन्दन
जन्म – 25 दिसम्बर 1980फरीदपुरहुसेनगंजफतेहपुर (उ0प्र0)
शिक्षा – एम0ए0 (हिन्दी)बी0 एड0।

लेखन – कविता, लघुकथाकहानी, व्यंग्य, समसामायिक लेख आदि।

परिचय – लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से। दोतीन वर्षों तक पत्रकारिता करने तथा कुछ वर्षों तक इधर-उधर भटकने‘ के पश्चात सम्प्रति अध्यापन

प्रकाशन – कवितायेंकहानियांलघु कथायें एवं समसामायिक लेख आदि का लेखन एवं विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं एवं blब्लॉग्स में नियमित प्रकाशन। 

आज जब कवि कुछ कविताएँ लिख कर ख़ुद को महारथी ही नहीं मानने लगते बल्कि पेश भी आने लगते हैं, तब प्रेमनन्दन जैसे युवा एवं विनम्र कवि का हमारे बीच होना आश्वस्तकारी है प्रेमनन्दन की कविताएँ पहली बार पर आप पहले भी पढ़ चुके हैं। यह सुखद है कि उनकी कविताओं में निरन्तर एक क्रमिक विकास दिखाई पड़ रहा हैंयह इस कवि की मजबूती भी है कि उसने अपनी नींव को सतत अध्ययन और लेखन से और पुख्ता किया है। उनका हालिया लेखन इसका गवाह भी है कविताओं पर न लिख कर आज बात सिर्फ कवि पर इसलिए भी कि एक बेहतर व्यक्तित्व ही किसी कवि को वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध बनाता है। इस तरह की प्रतिबद्धता हमें केवल जमीन से ही नहीं जोडती बल्कि बल्कि हमें वह रचनात्मक ताकत भी प्रदान करती है जो साहित्य की दुनिया में देर तक बने रहने के लिए जरुरी होती है। आज पहली बार पर प्रस्तुत है प्रेमनन्दन की कुछ नयी कविताएँ   

प्रेमनन्दन की कविताएँ

  

मेहनतकश आदमी

घबराता नहीं काम से
मेहनतकश आदमी ,
वह घबराता है निठल्लेपन से।

बेरोजगारी के दिनों को खालीपन
कचोटता है उसको,
भरता है उदासी
रोजी-रोटी तलाश रही उसकी इच्छाओं में।

पेट की आग से ज्यादा तीव्र होती है
काम करने की भूख उसकी
क्योंकि भूख तो तभी मिटेगी
जब वह कमाएगा
नही तों क्या खाएगा।

सबसे ज्यादा डरावने होते हैं
वे दिन
जब उसके पास
करने को कुछ नहीं होता।

रोजी-रोटी में सेंध मार रहीं मशीनें
सबसे बड़ी दुश्मन हैं उसकी
साहूकार, पुलिस और सरकार से
यहॉ तक कि भूख से भी
वह नहीं डरता उतना
जितना डरता है
मशीनों द्वारा अपना हक छीने जाने से ।

रोजगार की तलाश में
वह शहर-शहर ठोकरे खाता है
हाड़तोड़ मेहनत करता है
पर मशीनों की मार से
अपनी रोजी-रोटी नहीं बचा पाता,
तब वह बहुत घबराता है ।

स्त्रियाँ.. कुछ सवाल

         ( एक )

पढ़ना – लिखना
तकनीकें सीखना क्या
जरूरी नहीं है उनके लिए?

उन्हें क्या हमेशा
चूल्हे – चौके, घर-गृहस्थी के बीच
खटना है?
माँ-बाप, भाई-बहन
पति एवं बच्चों के बीच बंटना है?

         ( दो )

आँसुओं में डूबना-उतराना
और बाहर से मुस्कुराना
अपनी इच्छाओं की भेंट चढ़ाना,

रौंदे हुए अपने सपनों पर
दूसरों की इच्छाओं के
ताजमहल खड़े करना ,
बस क्या यही नियति है उनकी?

        ( तीन )

वे आँचल सहेजती हैं
लोग खींचते हैं ,
वे सिकुड़-सिकुड़ चलती हैं
लोग भींचते हैं ,

उनकी हँसी छीन कर
लोग मुस्कुराते हैं ,
फब्तियाँ कसते हुए
हँसते – इठलाते हैं !

       ( चार )

वे कभी नहीं जीतीं
अपनी जिंदगी
हमेशा जीतीं हैं
दूसरों की जिंदगी,

दूसरों के आदेशों के
पीछे-पीछे चलती हैं
दूसरों की इच्छाओं के
साँचे में ढलती हैं,

रोज आँसू को पीतीं हैं
फिर भी हँस कर जीतीं हैं ?

     ( पाँच )

माँ, बहन, बेटी,
लुगाई हैं वे
फिर भी जातीं
सताई हैं वे,

खुद को मिटा कर
सब कुछ लुटा कर

करती हैं सबकी सेवा
क्यों चाहते हैं लोग फिर
उनका अस्तित्व ही मिटाना।

3- हमारा भविष्य

कूड़े -कचरे के ढेरो से
प्लास्टिक की थैलियाँ
लोहे के टुकड़े
कागज और  गत्ते
ढूँढता-सहेजता,
सिर पर
कचरे का बोझ लिए
भटकता हमेशा
सड़क के किनारे -किनारे
इस नर्क से उस नर्क तक
हर दिन
हमारा भविष्य।

जायेगा उन्हें  लाद कर
पीठ पर
कबाड़ी की दुकान तक 
बेचेगा –
पायेगा-दो-चार रूपये
खरीदेगा –
पान की गुमटी से
पान मसाला की पुड़िया
फाड़ेगा उसको
खायेगा
और पिच -पिच  करता
चल देगा फिर उसी नर्क की ओर
हमारा भविष्य !

बाजार

बाजार भरा है
खचाखच सामानों से
मन भरा है
उन सबको खरीदने-समेटने के
अरमानों से
एक खरीदता
दूसरी छूट जाती
दूसरी खरीदता
तीसरे की कमी खलती
इस तरह
खत्म हो जाते हैं
पास के सारे पैसे
पर इच्छाएॅ अधूरी ही रह जातीं,

मन के किसी कोने में
कुण्डली मारे बैठा
अतृप्ति का कीड़ा
भूखा है अब भी।

अजीब -सा रीतापन
कचोटता रहता मन को
खरीद कर लाई गई सभी इच्छाएँ
लगने लगती तुच्छ
रख देता उन्हें अनमने  मन से
घर के एक कोने में।

अगली सुबह फिर जा पहुँचता
सामान से लबालब भरे बाजार में
फिर खरीदता
कल की छूटी हुई इच्छाएं
फिर भी रह जातीं
कुछ अधूरी इच्छाएँ
जिन्हें  नहीं खरीद पाता।

अधूरी  इच्छाओं की अतृप्ति
नहीं भोगने देती
पहले की खरीदी हुई
किसी भी वस्तु का सुख!

अतृप्त इच्छाओं की वेदी

सहसा एक चिता जली
पर
श्मशान में नहीं
एक शानदार बँगले के आँगन में ।

मुर्दा शरीर की नहीं,
जिंदा शरीर की।

प्रत्यक्षदर्शी पड़ोसी बताते हैं
कि उसकी हथेलियों पर
मेहँदी की रंगोलियाँ थीं
सुर्ख लाल जोड़े में
लाल-लाल चूड़ियाँ थीं।

वह लाल जोड़ा
‘लाल’ हो कर  राख में बदल गया!

कुछ लोगों की
अतृप्त इच्छाओं की वेदी पर
स्वाहा हो गई —
एक और लड़की !
एक और लड़की !!
एक और लड़की !!!

संपर्क – 
उत्तरी शकुन नगर, 
सिविल लाइन्स, फतेहपुर, उ०प्र० 
मोबाइल – 09336453835
ई-मेल premnandan10@gmail.com
ब्लॉग – aakharbaadi.blogspot.in

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की है.)

प्रेम नंदन की कविताएँ

                                                            
जन्म- 25 दिसम्बर 1980, फरीदपुर, हुसेनगंज, फतेहपुर, उ0प्र0                                         
शिक्षा – एम0ए0(हिन्दी), बी0एड0।                                     
व्यवसाय –  अध्यापन।
लेखन- 1995-96 से कविता, लघुकथा, कहानी, व्यंग्य, समसामायिक  लेख आदि विधाओं में।
प्रकाशन- काव्य संग्रह- ‘सपने जिंदा हैं अभी’ (2005), विभिन्न सहयोगी संकलनों में कवितायें प्रकाशित।
परिचय-     लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से। तीन-चार वर्षों तक पत्रकारिता करने तथा लगभग इतने ही वर्षों तक भारतीय रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद पर कार्य करने और कुछ वर्षों तक इधर-उधर ‘भटकने’ के पश्चात सम्प्रति अध्यापन कार्य के साथ-साथ कवितायें, कहानियां, लघु कथायें एवं समसामायिक लेखों आदि का लेखन एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन।
रूचियाँ :- पढ़ना, लिखना, संगीत सुनना और रेखाचित्र बनाना जिंदा रहने की सबसे अहम जरूरतें हैं ।

कवि की संवेदना अक्सर उन साधनहीन लोगों से जुड़ती है जिसे हम आम जनता के नाम से जानते हैं। आजादी के इतने दिनों बाद भी इस आम आदमी की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं आया है और यह आम जन बदहाली का जीवन जीने के लिए अभिशप्त है। जीवन की मूलभूत चीजें यानी रोटी और रोजगार उससे लगातार दूर होते गए हैं। हमारे इस युवा कवि प्रेम नंदन की नजर इन्हीं वंचित लोगों के जीवन पर है। कवि के शब्दों में कहें तो ‘इन मुट्ठी भर लोगों के/ बड़े सपनों के बीच/ कोई जगह नहीं है/ आम आदमी के छोटे सपनों की।’ यह स्थिति बहुत ही खतरनाक है। अगर हमें अपने समाज और इस देश को ज़िंदा रखना है तो आम आदमी के छोटे सपनों की परवाह तो करनी ही होगी तभी हम अपने विकसित राष्ट्र के सपने को हकीकत में तब्दील कर पायेंगे। तो आईये एक नजर डालते हैं इस युवा कवि के सपनों पर उसकी कविता के जरिये।
      
 बड़े सपने बनाम छोटे सपने

एक अरब से अधिक
आबादी वाले इस देश में
मुट्ठी भर लोगों के
बड़े-बड़े सपनों
और बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों,
शानदार हाली डे रिसार्टस…. से बना
विकास रथ चल रहा है
किसानों-मजदूरों की छाती पर।

ये बनाना और बेचना चाहते हैं
मोबाइल, कंप्यूटर, कार
ब्रांडेड कपड़े, मॅंहगी ज्वैलरी़…..
उन लोगों को
आजादी के इतने सालों बाद भी
जिनकी रोटी
छोटी होती जा रही है
और काम पहुंच से बाहर।

जिनके छोटे-छोटे सपने
इसमें ही परेशान हैं
कि अगली बरसात
कैसे झेलेंगे इनके छप्पर
भतीजी की शादी में
कैसे दें एक साड़ी
कैसे खरीदें-
अपने लिए टायर के जूते
और घर वाली के लिए
एक चांदी का छल्ला
जिसके लिए रोज मिलती रही है उलाहना
शादी से लेकर आज तक।

लेकिन इन मुट्ठी भर लोगों के
बड़े सपनों के बीच
कोई जगह नहीं है
आम आदमी के छोटे सपनों की।

राजमार्गों से बेदखल

राजमार्गों से बेदखल हो कर
अपनी घुच्ची आंखों से
पगडंडियों को रौंदते हुए
घिसटता हुआ,
वह आदमी
इतिहास  की अंधी गुफाओं में
आर्यो, मुगलों, अंग्रेजों…
और तथाकथित अपनों की
नीचताओं को देखते-देखते
अपनी आँखों में हो चुके मोतियाबिन्द को
अपने जंग लगे, भोथरे नाखूनों से
खरोंचने की कोशिश में
अपनी आँखों की रोशनी खो बैठा है।

उसकी फटी जेब में
जो एक टुकड़ा सुख चमक रहा है
वह उसका संविधान है
इसे वह जिसको भी दिखाता है
वही अपने को,
इससे उपर बताता है।

फिर भी वह,
इसी एक टुकड़े सुख की मद्धिम रोशनी
और बिखरी हुई लालिमा को
सफेद हो चुके अपने रक्त में मिला कर
जीने की बेशर्म कोशिश में
इसके-उसके-सबके सामने गिड़गिड़ा रहा है,
और अपने पोलियोग्रस्त शरीर को
खड़ा करने की लाचार कोशिश में
बिना जड़ों वाले पेड़-सा लड़खड़ा रहा है।

वह आदमी कोई और नहीं,
अपना हिन्दुस्तान है
जो कभी ‘शाईनिंग इंडिया’ की चमक में खो जाता है
तो कभी ‘भारत निर्माण’ के
पहियों तले रौंद जाता है
और प्रायः ही
राजनीतिक पार्टियों के,
चुनावी घोषणापत्रों के खोखले नारों की
जहरीली चकाचौंध में
अपना रास्ता भूल जाता है।

लेकिन उसकी अटूट जिजीविषा तो देखिए
कि टूटी हुई हड्डियों,
पीब से सने शरीर
और भ्रष्टाचार के कोढ़ से
गल चुके अपने पैरों को
रोज अपने खून के आंसुओं से धोता है
और तिरंगे के रूके हुए चक्र को
गतिमान करने की असहाय कोशिश में
खुद को ही
अपने कंधों पर ढोता है ।
                                                                                                              

सम्पर्क-    
उत्तरी शकुन नगर, सिविल लाइन्स, 
फतेहपुर, उ0प्र0, 212601  
दूरभाष- 09336453835
ई-मेल: premnandan10@gmail.com