शायक आलोक




 

जन्मतिथि- 8 जनवरी 1983 
शिक्षा- परा-स्नातक (हिंदी साहित्य)
बेगूसराय, बिहार 
कवितायें-कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में छपीं.
सन्मार्ग और नव-बिहार दैनिक समाचार पत्र में पोलिटिकल कमेंट्री और स्तम्भ लिखे
सम्प्रतिकस्बाई समाचार चैनलसिटी न्यूज़का सम्पादन/ अध्ययनरत.
२००० ई० के बाद की दुनिया बड़ी तेजी से बदली है. इस बदलाव के साथ-साथ इस समय के जीवन मूल्य, नैतिकताएं एवं आदर्श भी बदले हैं. शायक आलोक की कविता इसी बदले हुए समय का प्रतिनिधित्व करती है.  कविता की इस दुनिया में शायक अपने नए शैली के कथ्य और शिल्प के साथ आये हैं. इन कविताओं में आये अंग्रेजी के शब्द पुरानी पीढी के कवियों, आलोचकों को खटक सकते है, लेकिन चुकि यह समय ही कुछ ऐसा है कि जब विधाओं के अंतर्संबंधों पर बल दिया जा रहा है तब भला कोई भाषा दूसरी भाषा के शब्दों से कैसे अछूती रह सकती है.  भाषिक प्रयोग का शायक का यह साहस ही उन्हें इस पीढी के कवियों से बिलकुल अलग करता है. तो आईये रू-ब-रू होते हैं शायक की नवीनतम कविताओं से. 
  
 प्यार
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शेजवान प्रॉन फ्रायड राईस के साथ
प्रॉन मंचूरियन खा कर
रॉकी बाल्बोआ की तीसरी मूवी देखना
और कहना तुमसे
सो जाओ तुम कि सर्दी है तुम्हें
मैं नापा करूँगा तुम्हारे सीने का तापमान हर पैंतालिसवें मिनट
यही तो होता है न प्यार !?

या प्यार जरुर वह रहा होगा
जब उनींदी तुम महालया सुनती थी फ़ोन पर
तुम्हारे पिता तेज रखते थे टीवी की आवाज़
और उस धार्मिक लम्हे में मैं
और जोर से मेरी नाक तुम्हारी पीठ पर टिका देता था
तुम मेरे बाल जोर से खिंच लेती थी.

शायद प्यार वह भी था
हफ्ते के कमोबेश तीन रोज
तुम्हारे लौटने से पहले
धो देना तुम्हारे हिस्से के जूठे बर्तन
बाल्टी से निकाल कर निचोड़ देना
तुम्हारी बासी कैप्री/टीशर्ट
तुम्हारे लिए दरवाजा खोलने से पहले रोज
ऍफ़ एम् ट्यून कर तुम्हारा कोई पसंदीदा
नया फ़िल्मी गाना बजा देना.

प्यार ही तो था तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हारे बचे रह गए सामानों से लिपट कर रोना
दिसंबर की सर्दियों में रोज सर को भिंगोना तीन बार
गार्नियर के कंडिशनर की गंध को
रुमाल में बसा कर रखना.

आजकल प्यार-श्यार को नहीं मानने वाली तुम
कहती हो वक़्त भर देगा मेरे जख्म
इन्हीं कुछ महीनों में
और मैं कहता हूँ
तुम्हारी दी हुई लीवायस टीशर्टों, प्रो-वोग जूते
यार्डली-टेम्पटेशन डियोडेरेंट को खपाने में ही बरस गुजरेंगे..

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आफ्टर ब्रेकअप
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साथ रहने का वादा
मर्तबान में पड़ा अचार था
सड़ गया

फेंक दिया

और सुनो
तुम्हारी सब्जी में
नमक हमेशा ज्यादा होता था

और मैं नहीं भूला
मेरी व्हाईट शर्ट पर
तुम्हारे हल्दी वाले हाथों के निशान…
नईईईइ शर्ट थी मेरी वहह्ह्ह्ह !!!!!!!!

बासी प्रौन मंचूरियनसा
प्यार तुम्हारा
छी :
ठंडा -जमा हुआ

लो
कोने में उठा कर फेंक दिया है
तुम्हारा पिंक कलर वाला टेडी

तुम्हारी सेक्सी नायलोन नायटी पर खाना खाता हूँ अब

कमबख्त
ख़त्म ही नहीं होता….
इस छोटे से घर में तुम्हें भुलाने के अब भी सौ बहाने हैं !

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खड़ी खेत अलसी
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एक प्रेम जो /
किसी आड़ी तिरछी पगडण्डी पर लडखडाते साईकिल सा / धम्म…
गिर पड़ा पईन की सूखी ज़मीन पर

उसे अपनी खिलखिलाती हंसी में कैद कर लेती हैं दो चोटी वाली सोंधीगंधा
जमीन तेज बहुत तेज / भागती है
उसके दो हलके थाप खाली पदचिन्हों को छूती हुई
वह
आँगन को लौट आती उसी पगडण्डी की / मुट्ठी भर धूल
तुलसी चौरा में डाल अपना प्रेम रोप देती है.

साईकिल लुढकाता अपने घर को लौटता प्रेम/ लोकपरिया रस्ते में
तीन और बार धम्म गिरा देता है साईकिल
एक बात मुस्कुराती रहती है बेबात.

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 लड़की/सींग वाली भेड़
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एक लड़की
जो थी साबुत सही सलामत
उसे पहनाया गया पहले तो 

भेड़ की खाल
और फिर बेच दिया गया.

तो इस कहानी के
अगले हिस्से में
उसने खुद से यूँ ऊपर उठा कर
जोर से कस कर
यूँ बाँध लिए बाल
कि दो सींग बन गए.

घर के पिछवारे बाँधी गयी
इस सिंग वाली भेड़ ने
जब जब चलायी है दुलत्ती
तब तब एक भेड़िया मारा गया.

तो शहर में शोर है बहुत
इस दुलत्ती वाली भेड़ की
और यह जो लड़की थी
अब खुश है बहुत …. !

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हुम हुम
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हुम हुम की आवाज़ से संजीदा हो जाने वाला बांका जवान
ऊंट से गिर कर मर गया एक दिन. 


उसकी संजीदगी के लिए नहीं
किसी परंपरा के लिए
रुदालियों को आना था उस दिन
दिन में ही काले लबादे में
और रोना था काली शाम के घिरने के बाद भी देर तक
तब तक जब तक
सभ्यता के सभी रुदन स्वर समवेत हो
हुम हुम की ध्वनि न पैदा कर दें.

रुदालियों के कुनबे तक पहुंचे
हवेली के पहले हुम हुम टुकड़े के साथ ही
तमाम रुदालियों ने दम साध बढ़ा लीं धडकनें अपनी
फरमान कि जनाजा उठने तक दूध रोटी के लिए
नहीं रोये रुदाली बस्ती का एक भी बच्चा
बच्चों के हुम हुम दरवाजों के पीछे दफ़न रहे.

हवेली के दरवाजे पर खूब रोयीं खूब गायीं रुदालियाँ
अपने दिल को हुम हुम कराती रहीं
शोक गीत में हुम हुम का नाद जगाती रहीं
रोटी-कपडा-दूध-पानी-रेत-देह सबके लिए रोयीं रुदालियाँ
हवेली की औरतों ने सिसकियों से निर्बाह किया.

रुदालियाँ जनाजे की विदाई के साथ देर शाम विदा हुईं.

हुम हुम संभाले, रास्ता काटने को शोक गीत गुनगुनाती
कुछ/ तमाम रुदालियाँ जब रेत लिए घर लौटीं
तब कम से कम एक नहीं सो सका रात का बच्चा
रेत ओढ़ कर सो गया.

सुबह अँधेरे सबसे अंत में लौटी
अंतिम रुदाली ने
[
जो सबसे सुन्दर थी
जिसे रुदाली क्वीन कहा जा सकता है]
नजरें बचा कर अपने लौटने के निशान रेत पर से पोंछ डाले. 

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लाल नहीं..कत्थई
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तुम्हारे होंठों के लाल अंगारों के बरक्स
मेरे पास मेरी भूलें हैं 

एक अदद याद है
एक ठहरी हुई लड़की है
एक गुलाब है उसके जूड़े में
लाल.

लाल है
कल प्रेमी से मनुहार में मांगी गयी
किरायेदार लड़की की लिपस्टिक
लाल हैं अब तक उसकी आँखें
कल की कीमत
आज शाम चुका कर.

चुकाने हैं मुझे
मेरी स्मृतियों के उधार
जोड़ जोड़ कर, हिसाब लगा कर.
कत्थई है मेरे
गर्मास का लहू
मेरे प्रेम का रंग
अब मुझे लाल नहीं रखना.

मैंने किरायेदार लड़की से कहा है
घर रहा करे
तुमसे मिन्नतें कि अपने होंठ रखो कत्थई.

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फ्रिन्जें खुली रखना…
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मेरी आँखों में धूल थी
सपनो में सिलवट
रोता था तब बहुत आभासी फ्रिन्जों से लिपट कर 


रुके हुए वक़्त पर खींच कर पत्थर चलाती अल्हड लड़की थी तुम
एक रोज
एक पत्थर पानी पर बह आया
तय सफ़र के तलवे में कोई चक्र तो था नहीं
जो घूमता-भागता-सरपट
रुक गया मैं
हमारे बीच की चीजें मेरी ओर सरक आईं..

उसी एक रोज
जब बारिश थी ज्यादा
किसी एक बूंद से एक फ्रिन्ज दरक गया
उधर
एक फ्रिन्ज उलझ गया

मुझे गोलाईयों का नशा था

समय के अहाते में
जब
तुम्हारे आलिंगन का वृत्त
परिधियों तक सिमट आया
तब रिश्ता तो बनना ही था

मेरे नाम की झील में अब तुम रहती हो
पत्थर तुम्हारा
पानी की गोलाकार फ्रिन्जें तुम्हारी
तुम्हारा मैं
फ्रिन्जें अपनी खुली रखना ………. !!

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