नवनीत सिंह की कविताएँ

नवनीत सिंह


20 जनवरी 1988 को उत्तर प्रदेश के चन्दौली मे जन्मे नवनीत ने अर्थशास्त्र से परास्नातक की डिग्री प्राप्त की है. इन दिनों कविता के समाजशास्त्र से से जूझने की कोशिश में जुटे हुए हैं. नवनीत को नये लेखको को पढने मे रुचि है. इनकी इनकी कुछ कविताये ‘सिताब दियारा’ ब्लाग व ‘असुविधा’ ब्लाग पर प्रकाशित हो चुकी हैं.

साहित्य की सबसे बड़ी ताकत है कि यह तमाम नाउम्मीदियों के बीच भी उम्मीद की बात करता है. हिन्दी कविता के युवा स्वर नवनीत सिंह इस उम्मीद से लैस हैं. हमारे लिए यह अत्यन्त आश्वस्तिकारी है. हमारे लोक के बीच यह धारणा है कि उम्मीद पर ही ये दुनिया टिकी है और यह उम्मीद है कि दूब की तरह कहीं पर अपने लय में ही उग आती है और सुखाड़ में भी हरी-भरी बनी रहती है. आंधी-तूफ़ान भी इसका कुछ बिगाड़ नहीं पाते. तो फिर हम इंसान हो कर क्यों नाउम्मीद हों. युवा कवि नवनीत इसी क्रम में लिखते हैं – ‘यह पत्थर बनने का समय नहीं/ सीने पर जमे पत्थरों को/ तोड़ने का समय है/ हम एक स्वप्न के टूटने को/ दूसरे स्वप्न का जन्म समझते हैं/ इसलिए पृथ्वी पर बार-बार/ सम्भावना की बात करते हैं/ क्योंकि हम इंसान हैं/ और उम्मीद करते हैं’. स्वप्न के टूटने को भी सकारात्मकता से देखने की दृष्टि जब तक बची हुई है तब तक हमारी इस सृष्टि पर भी कोई संकट नहीं है. तो आइये आज रु-ब-रु होते हैं कुछ इसी तरह के स्वर और तेवर वाले युवा कवि नवनीत सिंह की कविताओं से.             





नवनीत सिंह की कविताएँ 

आशा

जब भी देखना
मेरे चेहरे पर
आँखो की नमी नहीं 

होठो की मुस्कान देखना,

इस तरह रखना हाथ
पराजय के बाद
मेरे कन्धे पर
दुखती रगो पर नहीं 
जैसे कितना अच्छा
लड़ा था मै,

गिनना कभी भी
मेरी ठोकरो को तब
छलाँग की तरह गिनना
जिनसे मै बढ़ा था आगे

इस तरह सोचना
मेरे बारे मे
जैसे सोचती है पृथ्वी
प्रलय के बाद
जैसे सोचता है आदमी
कुछ न होने के बाद

वे मेरे अपने है

जब-जब मैं गिरा
मुश्किलों की दौड़ मे
मुझे उठाने के लिये
उन्होने हाथ नही बढ़ाये
बल्कि हटाते रहे
मेरे सामने से
बैसाखियां और सीढ़ीयाँ

दुम हिलाती सभ्यता में 
वे केवल पूछे खड़ी
करने की बात जानते है,

सिद्धान्त, उसूल की
भोथरी तलवारों से
मुझे धकेल देते है
न्याय के युद्ध मे

मेरी जीत की
आश्वस्ति के साथ
तटस्थ होकर युद्ध का
लुत्फ उठाते है

मेरा हर वार
उनके चेहरे का
रंग बदल देता है

वे मेरी प्रशंसा नहीं करते
कभी तारीफो के पुल नही बाँधते
वे मेरे अपने है
और मुझे बनाना जानते है,

वह है
दूर जाने के बाद भी
वह है
विनम्रता की तरह
मेरी भाषा मे
जो किसी संस्कार से नही
उसके जाने के बाद आयी

वह है
मेरे शब्दों में
जिनमे मैं लिखता हूँ प्रेम

मेरी स्मृतियों में
जिनमें वह
विदा नहीं हो पायी

जब कभी बनूँगा
मै मील का पत्थर
खुद को खड़ा करूँगा
उसके शहर मे
कि वह देख सके
मेरी विनम्रता
जो उसके जाने के बाद आयी
पढ़ सके, मेरे शब्द
जिनमे मैं लिखता हूँ प्रेम
ढूढ़ सके, मेरी स्मृतियाँ
जिनमे वह विदा नही हो पायी
आज भी

पुरानी दीवार को देख कर
 

 एक दीवार में रहती है
एक गली की याद
झरती रहती है
समय के साथ

हम वहाँ कभी अकेले नहीं हुए
जब अकेलापन सबसे ज्यादा था
हम वहाँ कभी दुखी नहीं हुए
जब दुख के कई कारण थे
जैसे बाँट लेती थी दीवारें,
हमारे हिस्से की तकलीफें

एक पुरानी दीवार को देखते हुए
देखता हूँ अपने अतीत को
सबसे करीब से
जिसमे उपस्थित हूँ
अपनी सारी अनुपस्थिति के बाद भी

अब ढह रही है
वह दीवार
उस गली में
मेरी पहचान का
कोई बचा नही होगा

अनिश्चित प्रेम

पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद
जब निश्चित हुआ था मिलना
निश्चित हुआ था बिछड़ना
तब वह अनिश्चित था
अपनी सारी निश्चितताओं में,

वह रुका तो पैरों के निशान बने
उन्ही पद्चापो पर पैर रख
अनन्त वर्षो से लौट रही है
न जाने कितनी कठिनाईयाँ

गणित के प्रश्नों के बीच
कविता लिखे जाने की तरह

कृतघ्नताओं के बीच
धन्यवाद की तरह

दुख के दिनों में
सुख के गीत की तरह

(2)


एक कवि लिखता है कविताएँ
और दुखी हो जाता है

एक किसान चलाता है हल
और दुखी हो जाता है

वे जानते है उनका भविष्य
अनिश्चित प्रेम की तरह है

(3)


पगडण्डियां आहटो के इंतजार में हैं
तसल्लियां प्रेम के सार्थक होने की राह मे
मै मिलता हूं उनसे हर बार
जैसे लोग मिलते हैं पहली बार
पूछते हैं हालचाल
हाँ, बस ऐसे ही

उम्मीद

होशमंदों ने बचा कर रखा था
दुनिया के ढ़ेर सारे सुखों से
इसलिए हमने
काँटो का ख्याल नहीं रखा
फूल चुनते समय
और इस बेखयाली मे
करते रहे प्रेम की उम्मीद

हमने घृणा के बीच भी
प्रेम के लिये थोड़ी सी
जगह तलाश की और ढूढ़ा
उन रिश्तो मे अपनापन
जो टूटने से पहले
जुड़े हुए थे आखिरी डोर से

हम प्रेम मे हारे हुए लोगों को
पत्थर बनने से रोकते रहे
यह कहते हुए कि
यह पत्थर बनने का नहीं
सीने पर जमे पत्थरों को
तोड़ने का समय है

हम एक स्वप्न के टूटने को
दूसरे स्वप्न का जन्म समझते हैं
इसलिए पृथ्वी पर बार-बार
सम्भावना की बात करते है
क्योकि हम इंसान है
और उम्मीद करते है


सम्पर्क-  
महावीर रोड, धानापुर 
चन्दौली, वाराणसी, (0प्र0)

पिन- 232105

मोबाईल-
09616636302

ई-मेल : navaneetgaharwar@gmail.com

(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की है.)