वाल्मीकि जी को उनकी साहित्य सेवा के लिए ‘कथाक्रम सम्मान’, ‘ न्यू इंडिया बुक प्राइज़’, ८ वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन सम्मान’ न्यूयार्क, (अमेरिका), डॉ0 अम्बेडकर सम्मान (1993), परिवेश सम्मान (1995), और उत्तर प्रदेश सरकार के साहित्यभूषण पुरस्कार (2008-2009) से सम्मानित भी किया गया।
17 नवम्बर 2013 को वाल्मीकि जी का निधन हो गया।
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का । भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का । बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की । कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या ?
गाँव ?
शहर ?
देश ? (नवम्बर, 1981)
धकेल कर गांव से बाहर कर दिया जाय
पानी तक न लेने दिया जाय कुएं से
दुत्कारा फटकारा जाय चिल-चिलाती दोपहर में
कहा जाय तोड़ने को पत्थर
काम के बदले
दिया जाय खाने को जूठन
तब तुम क्या करोगे?
मरे जानवर को खींच कर
ले जाने के लिए कहा जाय
और
कहा जाय ढोने को
पूरे परिवार का मैला
पहनने को दी जाय उतरन
तब तुम क्या करोगे ?
·
पुस्तकों से दूर रखा जाय
जाने नहीं दिया जाय
विद्या मंदिर की चौखट तक
ढिबरी की मंद रोशनी में
काली पुती दीवारों पर
ईसा की तरह टांग दिया जाय
तब तुम क्या करोगे?
·
यदि तुम्हें,
रहने को दिया जाय
फूस का कच्चा घर
वक्त-बे-वक्त फूंक कर जिसे
स्वाहा कर दिया जाय
बर्षा की रातों में
घुटने-घुटने पानी में
सोने को कहा जाय
तब तुम क्या करोगे?
·
नदी के तेज बहाव में
उल्टा बहना पड़े
दर्द का दरवाजा खोलकर
भूख से जूझना पड़े
भेजना पड़े नई नवेली दुल्हन को
पहली रात ठाकुर की हवेली
तब तुम क्या करोगे?
·
अपने ही देश में नकार दिया जाय
मानकर बंधुआ
छीन लिए जायं अधिकार सभी
जला दी जाय समूची सभ्यता तुम्हारी
नोच-नोच कर
फेंक दिए जाएं
गौरव में इतिहास के पृष्ठ तुम्हारे
तब तुम क्या करोगे?
·
वोट डालने से रोका जाय
कर दिया जाय लहू-लुहान
पीट-पीट कर लोकतंत्र के नाम पर
याद दिलाया जाय जाति का ओछापन
दुर्गन्ध भरा हो जीवन
हाथ में पड़ गये हों छाले
फिर भी कहा जाय
खोदो नदी नाले
तब तुम क्या करोगे?
·
सरे आम बेइज्जत किया जाय
छीन ली जाय संपत्ति तुम्हारी
धर्म के नाम पर
कहा जाय बनने को देवदासी
तुम्हारी स्त्रियों को
कराई जाय उनसे वेश्यावृत्ति
तब तुम क्या करोगे?
·
झुलस कर सांवला पड़ जायेगा
खो जायेगा आंखों का सलोनापन
तब तुम कागज पर
नहीं लिख पाओगे
सत्यम, शिवम, सुन्दरम!
देवी-देवताओं के वंशज तुम
हो जाओगे लूले लंगड़े और अपाहिज
जो जीना पड़ जाय युगों-युगों तक
मेरी तरह?
तब तुम क्या करोगे?
शंबूक का कटा सिर
जब भी मैंने
किसी घने वृक्ष की छाँव में बैठकर
घड़ी भर सुस्ता लेना चाहा
मेरे कानों में
भयानक चीत्कारें गूँजने लगी
जैसे हर एक टहनी पर
लटकी हो लाखों लाशें
ज़मीन पर पड़ा हो शंबूक का कटा सिर ।
मैं उठकर भागना चाहता हूँ
शंबूक का सिर मेरा रास्ता रोक लेता है
चीख़-चीख़कर कहता है–
युगों-युगों से पेड़ पर लटका हूँ
बार-बार राम ने मेरी हत्या की है ।
मेरे शब्द पंख कटे पक्षी की तरह
तड़प उठते हैं–
तुम अकेले नहीं मारे गए तपस्वी
यहाँ तो हर रोज़ मारे जाते हैं असंख्य लोग;
जिनकी सिसकियाँ घुटकर रह जाती है
अँधेरे की काली पर्तों में
यहाँ गली-गली में
राम है
शंबूक है
द्रोण है
एकलव्य है
फिर भी सब ख़ामोश हैं
कहीं कुछ है
जो बंद कमरों से उठते क्रंदन को
बाहर नहीं आने देता
कर देता है
रक्त से सनी उँगलियों को महिमा-मंडित।
शंबूक ! तुम्हारा रक्त ज़मीन के अंदर
समा गया है जो किसी भी दिन
फूटकर बाहर आएगा
ज्वालामुखी बन कर!
(सितंबर 1988)
सहे कष्ट पीढ़ी-दर-पीढ़ी इतने
फिर भी देख नहीं पाए तुम
मेरे उत्पीड़न को
इसलिए युग समूचा
लगता है पाखंडी मुझको । इतिहास यहाँ नकली है
मर्यादाएँ सब झूठी
हत्यारों की रक्तरंजित उँगलियों पर
जैसे चमक रही
सोने की नग जड़ी अँगूठियाँ । कितने सवाल खड़े हैं
कितनों के दोगे तुम उत्तर
मैं शोषित, पीड़ित हूँ
अंत नहीं मेरी पीड़ा का
जब तक तुम बैठे हो
काले नाग बने फन फैलाए
मेरी संपत्ति पर । मैं खटता खेतों में
फिर भी भूखा हूँ
निर्माता मैं महलों का
फिर भी निष्कासित हूँ
प्रताडित हूँ । इठलाते हो बलशाली बनकर
तुम मेरी शक्ति पर
फिर भी मैं दीन-हीन जर्जर हूँ
इसलिए युग समूचा
लगता है पाखंडी मुझको । (अक्टूबर 1988)
मुँह-अँधेरे बुहारी गई सड़क में
जो चमक है–
वह मैं हूँ ! कुशल हाथों से तराशे
खिलौने देखकर
पुलकित होते हैं बच्चे
बच्चे के चेहरे पर जो पुलक है–
वह मैं हूँ ! खेत की माटी में
उगते अन्न की ख़ुशबू–
मैं हूँ ! जिसे झाड़-पोंछकर भेज देते हैं वे
उनके घरों में
भूलकर अपने घरों के
भूख से बिलबिलाते बच्चों का रुदन
रुदन में जो भूख है–
वह मैं हूँ ! प्रताड़ित-शोषित जनों के
क्षत-विक्षत चेहरों पर
घावों की तरह चिपके हैं
सन्ताप भरे दिन
उन चेहरों में शेष बची हैं
जो उम्मीदें अभी —
वह मैं हूँ ! पेड़ों में नदी का जल
धूप-हवा में
श्रमिक-शोणित गंध
बाढ़ में बह गई झोंपड़ी का दर्द
सूखे में दरकती धरती का बाँझपन
वह मैं हूँ सिर्फ मैं हूँ !!!
हथौड़े की चोट
चिंगारी को जन्म देती है
जो गाहे-बगाहे आग बन जाती है
.
आग में तप कर
लोहा नर्म पड़ जाता है
ढल जाता है
मनचाहे आकार में
हथौड़े की चोट में । एक तुम हो,
जिस पर किसी चोट का
असर नहीं होता । (फ़रवरी, 1985)
तुम्हारी तमाम कोशिशों के बाद भी
शब्द ज़िन्दा रहेंगे
समय की सीढ़ियों पर
अपने पाँव के निशान
गोदने के लिए
बदल देने के लिए
हवाओं का रुख स्वर्णमंडित सिंहासन पर
आध्यात्मिक प्रवचनों में
या फिर संसद के गलियारॉं में
अख़बारों की बदलती प्रतिबद्धताओं में
टीवी और सिनेमा की कल्पनाओं में
कसमसाता शब्द
जब आएगा बाहर
मुक्त होकर
सुनाई पड़ेंगे असंख्य धमाके
विखण्डित होकर
फिर –फिर जुड़ने के बंद कमरों में भले ही
न सुनाई पड़े
शब्द के चारों ओर कसी
साँकल के टूटने की आवाज़ खेत –खलिहान
कच्चे घर
बाढ़ में डूबती फ़सलें
आत्महत्या करते किसान
उत्पीडित जनों की सिसकियों में
फिर भी शब्द की चीख़
गूँजती रहती है हर वक़्त गहरी नींद में सोए
अलसाए भी जाग जाते हैं
जब शब्द आग बनकर
उतरता है उनकी साँसों में मौज़-मस्ती में डूबे लोग
सहम जाते हैं थके-हारे मज़दूरों की फुसफुसाहटों में
बामन की दुत्कार सहते
दो घूँट पानी के लिए मिन्नतें करते
पीड़ितजनों की आह में
ज़िन्दा रहते हैं शब्द
जो कभी नहीं मरते
खड़े रहते हैं
सच को सच कहने के लिए क्योंकि,
शब्द कभी झूठ नहीं बोलते ! 4 मई,2011
त्वचा में
सुई की नोक की तरह
जब वे कहते हैं–
साथ चलना है तो क़दम बढ़ाओ
जल्दी-जल्दी जबकि मेरे लिए क़दम बढ़ाना
पहाड़ पर चढ़ने जैसा है
मेरे पाँव ज़ख़्मी हैं
और जूता काट रहा है वे फिर कहते हैं–
साथ चलना है तो क़दम बढ़ाओ
हमारे पीछे-पीछे आओ मैं कहता हूँ–
पाँव में तकलीफ़ है
चलना दुश्वार है मेरे लिए
जूता काट रहा है वे चीख़ते हैं–
भाड़ में जाओ
तुम और तुम्हारा जूता
मैं कहना चाहता हूँ —
मैं भाड़ में नहीं
नरक में जीता हूँ
पल-पल मरता हूँ
जूता मुझे काटता है
उसका दर्द भी मैं ही जानता हूँ तुम्हारी महानता मेरे लिए स्याह अँधेरा है । वे चमचमाती नक्काशीदार छड़ी से
धकिया कर मुझे
आगे बढ़ जाते हैं उनका रौद्र रूप-
सौम्यता के आवरण में लिपट कर
दार्शनिक मुद्रा में बदल जाता है
और, मेरा आर्तनाद
सिसकियों में मैं जानता हूँ
मेरा दर्द तुम्हारे लिए चींटी जैसा
और तुम्हारा अपना दर्द पहाड़ जैसा इसीलिए, मेरे और तुम्हारे बीच
एक फ़ासला है
जिसे लम्बाई में नहीं
समय से नापा जाएगा।