रचना

रचना वाराणसी के सेन्ट्रल हिन्दू गर्ल्स स्कूल की बारहवीं की छात्रा हैं. रचना की इस कविता को वर्ष २०१२ का विद्यानिवास मिश्र प्रथम युवा प्रतिभा सम्मान प्रदान किया गया. निर्णायक मंडल में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के हिन्दी के विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर श्रद्धानंद थे.


इस छोटी सी कविता में रचना ने अपने घर की दो बूढ़ी दादियों के माध्यम से स्त्री जीवन की उद्यमशीलता को बयान किया है. इस कविता की खास बात यह है कि रचना ने जिस अंदाज में लय को साधा है वह सुखद है और हमें बहुत आश्वस्त करता है. यह कविता मधुकर सिंह के संपादन में छापने वाली पत्रिका ‘इस बार’ में युवा आलोचक सुधीर सुमन की टिप्पणी के साथ प्रकाशित हुई है.

दो बूढ़ी

मेरे घर में दो बूढ़ी
दोनों बूढ़ी काम से जुडी


हर समय करती हैं काम
सुबह, दोपहर या हो शाम


दिन भर करती रहतीं काम
रात नहीं तो नहीं आराम

सुबह जगीं तो लगीं काम में
सिरहाने हो  जैसे  काम