अनुप्रिया के रेखाचित्र

 

अनुप्रिया

अनुप्रिया से इधर जब मैंने पहली बार के लिए कविता माँगी तो उन्होंने बड़े संकोच के साथ कहा कि ‘आजकल कविताएँ तो नहीं लिख पा रही, बस रेखाचित्र ही बना पा रही हूँ.’ मैंने अनुप्रिया से अपने रेखाचित्र ही भेजने के लिए कहा. इन रेखाचित्रों में भी एक अलग तरह की कविता है जिसे नजरों के पारखी ही पढ़ पाएँगे. तो आज पहली बार पर प्रस्तुत है अनुप्रिया के रेखाचित्र.     

अनुप्रिया के रेखाचित्र

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सम्पर्क- 
ई-मेल : anupriyayoga@gmail.com

मोबाईल –  09871973888 

अनुप्रिया के रेखाचित्र

अनुप्रिया


परिचय 

नामअनुप्रिया

जन्म स्थानसुपौल, बिहार
शिक्षाबी

रूचिकविता लेखन। पठनपाठन
प्रकाशनकथाक्रम. परिकथा, वागर्थ, कादम्बिनी, संवदिया, युद्धरत आम आदमी, प्रगतिशील आकल्प, शोध दिशा, विपाशा, श्वेत पत्र, नेशनल दुनिया, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण,  संस्कारसुगंध, अक्षर पर्व, हरिगंधा, दूसरी परंपरा, लमही, हाशिये की आवाज आदि पत्रपत्रिकाओं में कवितायेँ निरंतर प्रकाशित।

नंदन, स्नेह, बाल भारती, जनसत्ता, नन्हे सम्राट, जनसंदेश टाइम्स, नेशनल दुनिया, बाल भास्कर, साहित्य अमृत, बाल वाटिका, द्वीप लहरी, बाल बिगुल में बाल कवितायेँ प्रकाशित।

संवदिया, विपाशा, ये उदास चेहरे, मधुमती, नया ज्ञानोदय, साहित्य अमृत, अनुसिरजण, हाशिये की आवाज़, दूर्वा दल के जख्म और अंजुरी भर अक्षर आदि पत्रिकाओं में रेखा-चित्र प्रकाशित।
रेखाचित्र अपने आप में एक स्वतन्त्र विधा है। इसके बावजूद पत्र-पत्रिकाएँ अपनी खाली जगहें भरने के लिए इसे इस्तेमाल करती हैं एक वह विधा है जो पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के बावजूद  लगभग उपेक्षित रहती है। लेकिन गौर से देखने पर ये रेखाचित्र स्वयं में बहुत कुछ कह रहे होते हैं। युवा कवयित्रियों में अनुप्रिया का नाम सुपरिचित है। इधर जब मैंने अनुप्रिया से पहली बार के लिए कविताओं हेतु सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि आजकल वे कविताएँ नहीं लिख पा रहीं बल्कि रेखाचित्र बना रही हैं। उनके रेखाचित्र इधर विविध पत्र-पत्रिकाओं में लगातार छपते रहे हैं। इनके रेखाचित्रों में स्त्री जीवन की विडंबनाओं को गहराई तक महसूस किया जा सकता है। वाकई जिसे उन्होंने अपने रेखाचित्रों के माध्यम से बड़ी सरलता और बेबाकी से कह डाला है उसे कविता के शिल्प में कहना संभवतः बहुत कठिन होता। यहीं पर विधाओं की अपनी-अपनी सीमाओं और अपनी अपनी ताकत का पता चलता है पहली बार के लिए अनुप्रिया ने अपने कुछ रेखाचित्र उपलब्ध कराए हैं। आइए आज देखते-पढ़ते-समझने की कोशिश करते हैं अनुप्रिया के इन रेखाचित्रों को। 

 

संपर्क 
    अनुप्रिया
         श्री चैतन्य योग
          गली नंबर27,फ्लैट नंबर817
          चौथी मंजिल ,डी डी फ्लैट्स
           मदनगीर ,नयी दिल्ली
           पिन110062

         

अनुप्रिया


जन्म तिथि०२०५१९८२

शिक्षाबी
रूचिकविता लेखन
प्रकाशन –  नंदन, कादम्बिनी, वागर्थ, कथाक्रम, परिकथा, संवदिया,युद्धरत आम आदमी, प्रगतिशील आकल्प, विपासा, आदि पत्रिकाओं में कवितायेँ निरंतर प्रकाशित.
समकालीन भारतीय साहित्य में दो कवितायेँ विचाराधीन
.

हमारा जीवन कई छोटी-छोटी घटनाओं, बातों, विचारों और उपक्रमों का एक समागम है। कोई भी व्यक्ति जब इन घटनाओं, विचारों और बातों को अपने संवेदनशील मन से देखता है तब वह इसे अपने चित्त में उतारता है। और अगर वह व्यक्ति कवि-मना हुआ तो वह इसे अपने शब्दों में उकेर देता है। अनुप्रिया ऐसी ही सम्भावनाओं से भरी हुई कवियित्री हैं जो छोटी-छोटी घटनाओं को काव्यात्मक रूप दे देती हैं। पहली बार पर प्रस्तुत है अनुप्रिया की कुछ इसी भाव-भूमि की कवितायें।  
 
बाजार

डरा हुआ है बाजार
और
डरे हुए हैं लोग
उदास और उतरा हुआ है
चेहरा हर आँगन का
गोसाईं की प्रार्थना करते हुए
थरथरा जाती है पिता की आवाज
कैसे लगेगा पार अब
ढाढस बंधाने को
कम पड़ जाती है माँ की हिम्मत
उम्र से ज्यादा दीखने लगी है
अब बडकी दीदी
इस बार भी नहीं पक्की हुई बात
अगली बार तो रेट भी बढ़ जायेगा
सोचकर मायूस हो गए हैं
उनके सपने
बच्चों की मीठी नींद
अब ब्रांडेड चाकलेटों के
मोहताज हैं
आम आदमी की
जेब में लगायी गयी है
कोई खुफिया सेंध
प्रेम में डूबे हुए
नए नए बच्चे
इजाद कर रहे हैं
सस्ती और टिकाऊ
मुस्कुराहटें
चमक धमक से भरे सपनों ने
नाराज हो कर
ली है नींद की दवा
और बंद कर लिया है
खुद को किसी अँधेरी गुफा में
इस डरे हुए बाजार में
बहुत सहमे और डरे हुए हैं लोग.

                                            

. 
आज फिर गीले होंगे सपने

मेघ फिर बरसा है
आज
आज फिर
गीले होंगे सपने
गमकेगा आँगन
उसना भात और मांगुर मछली से
खूब दौड़ेगा
भागेगा नए क़दमों से
दीदी का छोटा बेटा
आज फिर फुसफुसाएगी
बडकी  काकी छोटकी काकी के साथ हँस हँस कर
चूल्हे की ओर
उठकर बार बार जायेंगे
मझले काका
गमकते हुए कहेंगे
आज
थोडा प्याज भी काट लेना
और पापड भी
आज साईकिल रुक जाएगी दालान पर ही
छोटे मामा की
चुहल करते हुए माँ से
कहेंगे चाचा
आज फिर आ गए हैं आपके भैया
काम काज के बहाने
माँ
हँसते हुए बजती रहेगी
चूड़ियों में
एक शोर के साथ
सब बच्चों को उठाया जायेगा
अधूरी नींद से
देर रात तक चहल पहल
में डूबा रहेगा पूरा घर
एक उत्सव सा
मनाया जायेगा
रुक रुक कर आवाज देती रहेगी दादी
टोकते हुए अपनी नींद को
कुछ अधबोला सा रह जाएगा
फेरते हुए करवट
अपने हाथों से ढूंढेगी यादों का चश्मा
किवाड़ की ओट से
देखेगी दीदी लजाते हुए
रुकते हुए
हँस देगी आँखों में
फिर से तड़कने लगा है
मेघ
बूंदा बांदी सजने लगी है
आँगन की
दीवारों पर
कि
आज फिर गीले होंगे सपने ………
.बिरवा

जब
प्रेम हुआ था बिरवा को
तब कहाँ जानती थी की
खुद को ही भूल बैठेगी प्रेम में
भूल जाएगी
आकाश, धरती, नदियों,
पहाड़ों, पेड़ों
का अस्तित्व भी
और दुनिया के
सारे नियम क़ानून
भूल जाएगी की
होते हैं कान दीवारों के
जो चुपके सुन लेते हैं उसकी
साँसों और धडकनों की आहटें
की
रखते हैं लोग
उसकी हर हरकतों पे नजर
हर कहीं आने जाने की खबर
भूल जाएगी की
हँसते हैं लोग ठठा कर पीठ पीछे
गढ़ते हैं अनूठे
नए नए किस्से
सच्चे झूठे
करते हैं कानाफूसी देखते ही
लेकिन भूल जाएगी
अपने प्रति हर किसी की गलतियां
और माफ़ कर देगी सबको तहेदिल से
पर भूल कर भी
नहीं भूलेगी बिरवा
प्रेम को
प्रेम में डूबी
पगली बिरवा….
                          

कुछ पल ठहरो

हो सके तो
कुछ पल ठहरो
सूरज
फिर आना रंगने सम्पूर्ण सृष्टि
उजालों में
अभी
नींद अधूरी है दादी की
रात भर खांसती
टटोलती रही
अपनी आँखों में
पुरानी  यादों के उजले सपने
जरा ठहरो
कि नहीं भर पायी है
सारे रंग अपनी ख्वाहिशों में
बडकी दीदी
रुको जरा
कि नहीं गया है दर्द
बाबूजी के घुटनों का
उनकी टीस  भरी थकान को
नींद के परों पर उड़ जाने तो दो
कि नहीं जुटा पायी है माँ
उम्मीदों के हुलसते फूल
जो बदल दें
हर अँधेरे को
धुली सी रौशनी में
हो सके तो
कुछ पल ठहर जाओ सूरज!
               
.माएं

माएं
सब से बचा कर
छुपा कर
रखती है संदूक में
पुरानी, बीती  हुई,
सुलगती, महकती
कहीअनकही बातें
मन की
मसालों से सने हाथों में
अक्सर छुपा कर ले जाती हैं
अपने
गीले आंसू
और ख्वाबों की गठरियाँ
देखते हुए आईना
अक्सर भूल जाती हैं
अपना चेहरा
और खालीपन ओढ़े
समेटती हैं घर भर की नाराजगी
चूल्हे का धुआं
उनकी बांह पकड़
पूछता है
उनके  पंखों की कहानी
बना कर कोई बहाना
टाल जाती हैं
धूप की देह पर
अपनी अँगुलियों से
लिखती है
कुछ
रोक कर देर तक  सांझ को
टटोलती है
अपनी परछाइयाँ
रात की मेड़ पर
देखती है
उगते हुए सपने
और
ख़ामोशी के भीतर
बजती हुई धुन पहन कर
घर भर में
बिखर जाती है !!

 
                              
.तुम्हारे जाने के बाद

अब से रहेगा
उदास और बहुत अकेला
तुम्हारा आँगन
तुलसी चौरा
रह जाया करेगा
बिन सांझ बाती के ही अक्सर
अब से नहीं
कहेंगी  तुम्हारी चूड़ियाँ
तुम्हारी मुस्कुराहटें और तुम्हारी नाराजगी
नहीं
महकेगी घर भर में
तुम्हारे स्नेह की
भीनी भीनी अगरबत्ती
रह जायेंगे
अधूरे और चुप चुप से
पिता
बिन तुम्हारे
नहीं करेंगे साझा
अपना सुख और दुःख
किसी से
बदलते हुए करवटें
अपनी पीड़ा
किसी दराज में बंद कर देंगे
कहा अनकहा सब बह  जायेगा
रात के सफ़ेद
तकिये पर
अपना गुस्सा और अपनी खीझ
अब संभलकर
खर्च करेंगे
पिता
भूल जायेंगे
ठठाकर हँसना बोलना
भूल आयेंगे
अपना आप
तुम्हारे जाने के बाद

(इस पोस्ट में प्रयुक्त सभी पेंटिंग्स गूगल से साभार ली गयी हैं।)
 
संपर्क-
 
द्वारा श्री चैतन्य योग 
चौथा तल्ला मकान नं 817, 
गली नं-27 डीडीए फ्लैट्, 
मदनगीर, नई दिल्ली 
110062

E-mail: anupriyayoga@gmail.com