Loneliness by Hans Thoma (National Museum in Warsaw). |
ढलती उम्र, थकती काया और दिन-ब-दिन कम होती मनो दैहिक क्षमताओं के बीच बुजुर्गों का सबसे बड़ा रोग असुरक्षा के अलावा अकेलेपन की भावना है। उनकी देखभाल के लिए कोई सेवक रख देने से या उन्हें ओल्ड एज होम भेजने से उनकी परिचर्या तो हो जाती है, लेकिन भावनात्मक रूप से उन्हें वैसा संतोष नहीं मिल पाता जो सिर्फ अपने परिजनों के बीच में रह कर मिलता है। शहरी जीवन की आपाधापी तथा परिवारों के बिखराव ने समाज में कई समस्याओं को बढ़ा दिया है। एक तो परिवार के ज्यादातर सदस्यों के पास अपने बुजुर्गों के साथ बिताने के लिए समय ही नहीं है, वहीं कुछ बुजुर्गों का खुद का नजरिया भी उनकी परेशानी का कारण बन जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार जरूरत इस बात की है कि परिवारों में इस बुजुर्ग पीढ़ी को संसाधन के रूप में माना जाए, लेकिन कुछ परिवारों में उन्हें बोझ के रूप में लिया जाता है। वृद्धावस्था में देह के थक जाने के कारण हृदय संबंधी रोग, रक्तचाप, मधुमेह, जोड़ों के दर्द जैसी आम समस्याएँ तो होती हैं, लेकिन इससे बड़ी समस्या होती है भावनात्मक असुरक्षा की। भावनात्मक असुरक्षा के कारण ही बड़े बुजुर्गों में तनाव, चिड़चिड़ाहट, उदासी, बेचैनी जैसी समस्याएँ होती हैं। पश्चिमी समाज की तरह हमारे देश में भी बुजुर्ग पीढ़ी में अकेलेपन की भावना तेजी से बढ़ रही है। अपनी पीड़ा से उबरने के लिए बुजुर्गों को यह गौर करना चाहिए कि उनकी समस्या में उनका अपना क्या योगदान है। आर्थिक-सामाजिक दबावों के कारण अक्सर बच्चे बड़े हो कर दूसरे शहर या विदेश चले जाते हैं। ऐसे में खासकर भारतीय बच्चों के मन में भयंकर द्वंद्व होता है और वे अपने माँ बाप को साथ ले जाने और उन्हें घर पर छोड़ देने की दुविधा में जकड़ जाते हैं। ऐसे में बुजुर्गों को उनके साथ सहयोग करना चाहिए, न कि उनकी दुविधा को और अधिक बढ़ाना चाहिए। बच्चों को भी अपने अभिभावकों, माता-पिता के प्रति इस्तेमालवादी रुख न अपना कर उन्हें अपने साथी-सहयोगी और ऐसे सह-यात्रियों की तरह देखना चाहिए जिन्होंने उनकी परवरिश में अपने जीवन के कई बरस खपाए हैं और उनकी उपलब्धियों में उनका सकारात्मक योगदान रहा है। इस तरह की सोच आपसी स्नेह बढ़ाएगी और अकेलेपन एवं उससे जन्म लेने वाले अवसाद को काफी हद तक कम करेगी।
Loneliness Paintings Abstract Canvas Zoltan Pal |
अकेलेपन का साथी, अवसाद
अकेलेपन और अवसाद यानी डिप्रेशन के बीच एक गहरा सम्बन्ध है जिसे समझने की जरुरत है। गौरतलब है कि एक देश जिसकी गहरी जड़ें आध्यात्मिकता में रहीं हैं, उसके धर्म और आध्यात्मिक ज्ञान उसे नैराश्य और अवसाद का सामना करने में मदद नहीं कर पाए हैं! पर इसके बारे में शुरू से ही एक सजगता रही है ऐसा प्रतीत होता है। गीता को विश्व की महानतम आध्यात्मिक पुस्तकों में गिना जाता है, और उसकी शुरुआत ही होती है विषाद से। विषाद का अर्थ ही है गहरा दुःख और इसके निहितार्थ अवसाद के बहुत ही निकट है। इसका सीधा सम्बन्ध अकेलेपन के साथ है। गीता के पहले अध्याय में ही जब अर्जुन कौरव सेना में अपने रिश्ते-नातेदारों को देखता है तो उसकी जो मनोदैहिक स्थिति होती है, वह अवसाद के लक्षण ही दर्शाती है। अवसाद के इन क्षणों में वह अपने साथी-संगियों, नाते-रिश्तेदारों और यहाँ तक कि अपने प्रिय सखा कृष्ण की उपस्थिति में भी पूरी तरह अकेला महसूस करता है। यह उसके लिए गहरे भय का क्षण भी होता है और उसके व्यवहार में उस व्यक्ति के ऐसे सभी लक्षण दिखाई पड़ते हैं जो लम्बे समय से निपट अकेलेपन का शिकार रहा हो। कृष्ण से वह कहंता है कि उसके अंग शिथिल होते जा रहे हैं, और गांडीव उसके हाथ से छूटा जा रहा है, उसका शरीर काँप रहा है और कंठ सूख रहा है। बाद में मित्र और सारथी कृष्ण के साथ एक लम्बे संवाद के बाद वह इस पीड़ादायक उहापोह से बाहर आता है। एक तरह से देखा जाय तो इसमें यह संकेत मिलता है कि अकेलेपन से पीड़ित कोई व्यक्ति जब अपने भावों को किसी मित्र के सामने व्यक्त कर पाए, तो वह अपनी दुखदायी स्थिति से बाहर हो सकता है। यही काम आज के समय में पेशेवर मनोचिकित्सक और मनोविश्लेषक करते हैं। परिवार के सदस्य और मित्र ऐसी परिस्थितियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
Painting Loneliness – Artist Maria Gruza |
किराये पर दोस्त
जिस खबर का शुरू में ज़िक्र किया है वह कुछ वेबसाइट्स से जुड़ी है जिनमे से एक का नाम है रेंटअफ्रेंड.कॉम। बड़े शहरों में किसी भी अकेले युवक और युवती, या बुजुर्ग को दिन भर की थकान, चिक चिक के बाद किसी के साथ शाम को बैठ कर कॉफ़ी पीने और अपने सुख-दुःख शेयर करने का दिल कर सकता है। ऐसे में इस वेबसाइट के जरिये आप ‘किराये’ पर किसी दोस्त को बुला सकते हैं। उसके साथ आप किसी रेस्त्रां में या पार्क में समय बिता सकते हैं। यह सम्बन्ध कुछ घंटो के लिए ही होगा, और सिर्फ भावनात्मक शेयरिंग तक ही सीमित रहेगा। यदि यह स्वाभाविक रूप से आगे बढ़ता है, तो यह दोनों पक्षों की सहमति पर निर्भर करेगा। आप साथ बैठ कर सिर्फ चाय-कॉफ़ी पीना चाहते हैं तो आपको इसका करीब पांच से छह सौ रूपये किराया देना होगा और यदि डिनर पर, माँ-बाप, घर वालों के साथ जाना हो तो इसकी कीमत 1000 रुपये तक हो सकती है। रेंटअलोकलफ्रेंड.कॉम और फाइंडफ्रेंड्स.कॉम भी ऐसे ही पोर्टल्स हैं जो आपको अपने ही शहर या इलाके के दोस्तों से मिलवाने का वादा करते हैं। कुछ पोर्टल्स ऐसे भी हैं जो पांच सौ या एक हज़ार रुपये सदस्यता शुल्क भी लेते हैं। कई लोगों को यह चौंका देने वाला अजीबोगरीब तरीका लग सकता है, पर जरुरी नहीं कि इसमें हमेशा कोई अप्रिय घटना होने की ही सम्भावना हो। कुछ वेबसाइट्स स्पष्ट रूप से यह कहती हैं कि वे सिर्फ और सिर्फ प्लेटोनिक संबंधों को, सिर्फ दोस्ती को बढ़ावा देने के लिए बनायी गयी हैं। रेंटअफ्रेंड.कॉम पर इस महीने के पहले हफ्ते में छह लाख इक्कीस हज़ार पांच सौ पचासी दोस्त किराये पर उपलब्ध थे। फेसबुक पर भी ऐसे कई पेजेस हैं जो इस तरह के दोस्ताना रिश्तों को शुरू करने में मदद करते हैं। मित्र बनने या होने से ज्यादा जरुरी हो गया है मित्र खोजना और पाना। कहते हैं मित्र पाने का सबसे आसान तरीका है कि आप खुद मित्र बन जाइए। पर इस तरह की बातों को अब ज्ञान बघारना कहा जाता है। मित्र बनाने की होड़ सी लगी हुई है। फेसबुक पर आप पांच हजारिया हो जाएँ तो आपकी गर्दन सारस की तरह अकड़ जाती है। पर यह सिर्फ एक आवरण है जिसके पीछे बैठा व्यक्ति अपने अकेलेपन के साथ घुटता हुआ भी देखा जा सकता है।
Loneliness Painting by Lanre Buraimoh |
अकेलापन और सृजनशीलता
हालाँकि अकेलेपन के एक सृजनात्मक पहलू पर भी कवियों और दार्शनिकों ने रोशनी डाली है पर अकेलेपन को सृजनात्मकता के स्त्रोत के रूप में बदल देना गहरी समझ की मांग करता है। जे कृष्णमूर्ति ने लोनलीनेस, एकाकीपन या निर्जनता और अलोननेस या अकेलेपन में साफ़ साफ़ फर्क किया है। वह कहते हैं कि एकाकीपन आपको अलग थलग करता है, जबकि अलोन का अर्थ है ‘ऑल वन’, अर्थात जो अकेला होता है, वह पूरी सृष्टि के साथ होता है। उसे किसी व्यक्ति विशेष के साथ की आवश्यकता नहीं पड़ती। गौरतलब है कि लेखकों, चिंतकों और कलाकारों का अकेलापन मानसिक ज्यादा और भौतिक कम होता है, तभी तो सार्त्र ने अपना ज़्यादातर काम फ्रांस के कैफ़े और रेस्टोरेंट में ही बैठ कर किया। कलाकार के भीतर एक ख़ास किस्म की क्षमता होती है कि वह भीड़ में भी खुद को अकेला कर लेता है। अंग्रेजी कवि विलियम वर्ड्सवर्थ अक्सर पर्वतों और वादियों के ऊपर से तैरते बादल की तरह अकेला हो जाता है और उन क्षणों को अपनी रचनाशीलता के लिए संजो कर रखता है। काफ्का कहता है कि लिखना बिलकुल तनहा हो जाना है, अपने अंतर्मन की ठंडी गहराइयों में डूबते जाना है। अमेरिकी चिंतक-लेखक हेनरी डेविड थोरू का कहना है कि उन्हें अकेलेपन से बेहतर साथी कभी मिला ही नहीं। पर एकाकीपन की मजबूत दीवार तोड़ कर अकेलेपन की सृजनात्मकता की ओर बढ़ना सबके वश की बात नहीं।
Abstract Art Loneliness! by rudolf brink |
मौत के बाद भी तनहा
पिछले दिनों एक और खबर पढ़ी जो यहाँ की संस्कृति के सन्दर्भ में चौंका देने वाली है। हैदराबाद से आकर कोलकाता में बसी एक महिला ने एक ऐसी एजेंसी बनायी है जो लोगों के अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था करती है। शव की देखभाल, उसे सुरक्षित रखने से ले कर शव वाहक गाडी और पंडित-पुरोहितों का इन्तेजाम तक यह एजेंसी करती है। अलग-अलग संप्रदाय के लोगों के लिए तरह तरह के पैकेजेस हैं। एजेंसी की सेवाएं ऑन लाइन भी बुक करवाई जा सकती हैं। वह श्राद्ध वगैरह का भी प्रबंध कर देती हैं और जरुरत पड़े तो शव को दूसरे देश भी भेजने की व्यवस्था करवा देती हैं। देश से बाहर रहने वाले लोगों के किसी रिश्तेदार की भारत में मौत हो जाए तो ऐसे में यह एजेंसी बहुत मददगार साबित होती है। लम्बे समय तक बाहर रहने वालों का भारत में अपने नाते रिश्तेदारों के साथ संपर्क टूट जाता है और ऐसे में हर छोटी-बड़ी चीज़ों का बंदोबस्त करना उनके वश की बात नहीं रह जाती। अंत्येष्टि फ्यूनरल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड नाम की एजेंसी उनकी सहायता करती है। भविष्य में कभी ऐसा भी हो सकता है कि किसी रिश्तेदार की मौत पर लोग बाहर से ही फ़ोन कर दें और इस तरह की एजेंसियां देश में ही अंतिम संस्कार से जुड़े सभी कर्मकांड निपटा कर करके उन्हें बस सूचना दे दें। इस अनूठी एजेंसी के काम को सफलता मिल रही है और सामाजिक-आर्थिक कारणों से हो रहे बदलाव जल्दी ही कई और लोगों को इस तरह का ‘व्यापार’ शुरू करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। अभी तो हमे इन ख़बरों को पढ़ कर थोडा अजीब लग सकता है, पर धीरे धीरे अन्य बातों की साथ इनकी भी आदत पड़ जानी है। हो सकता है मानवीय संबंधों की देख-रेख का समूचा काम विशेषज्ञ और पेशेवर एजेंसियां ही संभाल लें। हो सकता है अकेलापन और उससे जुड़ा अवसाद भी साथ ही बढ़ता चला जाए।
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