मृत्य पर , बिना अतिशयोक्ति
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झेल नहीं सकती एक कहकहा
ढूंढ नहीं सकती कोई तारा
बुनाई , खनाई , खेती का
इसे कुछ पता नहीं
जहाज बनाने या केक पकाने
का तो सवाल ही नहीं
लेकिन कहना न होगा कि
कल की हमारी सारी तैयारियों पर
आख़िरी मुहर उसी की होती है
इसे तो कुछ उन कामों का भी शऊर नहीं
जो इसी के बिजनेस का हिस्सा है
जैसे कब्र खोदना
कफ़न बनाना और
अपने तशरीफ लाने बाद की साफ़ सफाई
जूनून में
खून भी करती है हबड़ तबड़ में
ढब नहीं, कोई ढंग नहीं ,
जैसे हम में से हर एक
पहिलौठा शिकार हो उस का
जरूर, कई निशाने अचूक होते हैं
लेकिन चूक भी जाते हैं अनगिनत
देखिये देखिये वे टेक- रीटेक
खम्भे नोचना
कई दफे तो
मक्खी तक उडाये नहीं उड़ती
इल्लियां तक चकमा दे जाती हैं
तितलियाँ बन कर
देखिये ये तमाम बिखरी हुयी घुन्डियाँ ,
फलियाँ , स्पर्शक , मछलियों के पखुड़े, खाइयां , शादियों के मौर , ऊन के रोयें …
आधे अधूरे मन से किये गए
नाकाम कामों के निशान
हम भी आखिर कितनी मदद कर पाए हैं
अपने युद्द्धों और फौजी कब्जों इत्यादि से
नन्ही धडकनें ज़िंदा रहती हैं अण्डों में
बड़ी होती रहती हैं
बच्चों की हड्डियां
बीज कड़ी मेहनत करते हैं
और अंकुरित हो जाते हैं
जबकि जब तब गिर पड़ते हैं
विराट वृक्ष भी
कौन कहता है
मृत्यु सर्वशक्तिमान है
कहने वाला खुद एक ज़िंदा सबूत है
कि यह कितनी फालतू बात है
कोई जीवन ऐसा नहीं
जो अमर न हो सके
एक पल के लिए चाहे दो पल के लिए
मृत्यु
को आते हुए
हमेशा उसी पल दो पल की देर हो जाती है
व्यर्थ खटखटाती है
वह अदीठ दरवाजा
जितनी दूर आप चले आये है
वहाँ से वापसी मुमकिन नहीं
(‘पुल पर लोग’, १९८६-The People on the Bridge”, 1986- से. )
Tatiana Szurlej के अनुवाद से प्रेरित
प्रस्तुति -आशुतोष कुमार
बायोडाटा लिखना
तय किया जाना है ?
आवेदन पत्र भरो और नत्थी करो बायोडाटा
जीवन कितना भी बड़ा हो
बायोडाटा छोटे ही अच्छे माने जाते है.
स्पष्ट , बढ़िया, चुनिन्दा तथ्यों को लिखने का रिवाज है
लैंडस्केपों की जगह ले लेते हैं पते
लडखडाती स्मृति को रास्ता बनाना होता है ठोस तारीखों के लिए.
अपने सारे प्रेमों में से सिर्फ विवाह का जिक्र करो.
और अपने बच्चों में से सिर्फ उनका जो पैदा हुए
तुम्हें कौन जानता है
यह अधिक महत्त्वपूर्ण है बजाय इसके की तुम किसे जानते हो
यात्रायें बस वे जो विदेशों में की गयी हों
सदस्यताएँ कौन सी, मगर किस लिए – यह नहीं
प्राप्त सम्मानों की सूची, पर ये नहीं की वे कैसे अर्जित किये गए
लिखो, इस तरह जैसे तुमने अपने आप से कभी बातें नहीं की
(अनुवाद- अशोक पाण्डेय)