घर वाले की
अंदर बैठी घरवालियां
घरवाले हैं घोषित राजा
घरवालियों की समझ से
वो है अपनी ही मनमानी रानियाँ
पर मेज के इस पार से उस पार
आँखों के गठजोड़
परोसते है
किसम–किसम के राजाओं की
किसम–किसम की
वैध–अवैध प्रजाएँ ।
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मेज के उस पार
आ कर बैठती हैं
अनजान सी स्त्रियाँ
जानी सी स्त्रियाँ
सुन्दर औरतें
असुंदर औरतें
कैसी भी हों
खोलती हैं सब की सब
गाँठ दर गाँठ
अपने सद्गृहस्थ संवरे
बालो की लटो में उलझा
अपना झेला
सजा–धजा
अझेल साम्राज्य …. ।
जाँची जाती है
आँखों से
सवालों से उँगलियों के पोरों से
पूछे गये इतिहास से
कही–अनकही
रुग्ण व्याख्याओ से
सुनी जाती है आलो से
देखी जाती है
खूब ही गहरे
जाने किन–किन ताखो से,
भांति–भांति के नमूनों से
परखी जाती है
पूरा का पूरा ही
परोस दी जाती है स्त्रियाँ
अजनबी हाथ,
फिर अभिलेखों में होती है दर्ज
यूँ ही बस
किसी पुरानी
गुम चोट के नाम …
कहीं भी छुई जाती है
डांटी जाती है
डपटी जाती है
कसी जाती है
गहरे बिने चोटीले मुसक्को से
पुचकारी जाती है
लात मारती गायों सी
और गरदनिया कर
बाँध दी जाती है
दुधारे खूंटो से …
समान शुल्क चुका कर आई
संदिग्ध स्त्रियाँ
असंदिग्ध स्त्रियाँ
मंगलसूत्र सिंदूर
पहन कर आई स्त्रियाँ
मंगलसूत्र सिंदूर
पर्स में रख कर लाई
छिपे कोनों में पहनती स्त्रियाँ
आखिर इनकी जरुरत ही क्यों है …
दिखाती है
संकोच,शर्म और मुस्कान
इच्छाएँ
अपनी–तुम्हारी
दर्द, कष्ट और बेशर्मी –
शारीरिक, मानसिक और सामाजिक ,
विस्तार पटल पर
क्या कहूँ
और क्या दूँ
उनकी खंदको में
धरती–आसमान
जमींदोज पाताल
या फिर तीनो ही ….
आँखों में भर लाती है
पुरुष इच्छाओं और
सुसंस्कारो की
चौड़ी अँधेरी छाती
बाहुबली,पक्के
अवैध कब्जों की मनमानी
कराती है उनसे
खुले हाथ
किन्नरों सा
जबानी जमा खर्च बस ….
लंबे–पतले
मेल–बेमेल
खूबसूरत – गैर खूबसूरत
कैसे भी हो जोड़े
सब को हां–
सभी को चाहिए है
राजकुमारों की
परजीवी अमरबेल
किसी की भी चाहना में
है ही नहीं
अक्षय वटवृक्ष सी घनी
पोषक राजकुमारियाँ
झूलते है
जिनकी लटो में
पासे फेंकते ये ही
शकुनि राज कुमार …..
अपने साथ
कितना कुछ बटोर लाती है
और सब उलट देती है
बहुत जल्दी–जल्दी
फिर खाली हो जाती है
दुबक जाती है
भरी कुर्सियों पर बैठे
खालीपन के हाथो में
परती पड़ी उनकी आँखें
बिठाती है
अपने–अपने हिसाबो की पंगत,
और बिछाती है
मांगो की अपनी–अपनी पत्तल
मेज के इस पार से जाते है
आँखों,शब्दों और
थामी हुई उँगलियों के
बड़े–बड़े निवाले
वो सब परोसा खा जाती है
बहुत जल्दी–जल्दी
भुक्खड़ भिखारी की तरह
और बजती है किसी ….
….. नैनसुख के कटोरे में
खनखनाते खोटे सिक्को की तरह ……