Category: संतोष अलेक्स
पवित्रन तीकूनी
संतोष अलेक्स
संतोष अलेक्स की पहचान एक बेहतर अनुवादक की रही है. लेकिन वे एक बेहतरीन कवि भी हैं. अपनी भाषा मलयालम में कविताई करने के साथ-साथ संतोष हिंदी में भी बेहतर कवितायेँ लिख रहे हैं. लोक और अपनी मिट्टी से जुड़ाव संतोष की कविताओं में सहज ही देखा और महसूस किया जा सकता है. ‘मिट्टी की कोई जात धरम नहीं होती/ जो भी गिरे वह थाम लेती है/ जैसे माँ बच्चे को थामती है’ जैसी पंक्ति मिट्टी से जुड़ा रचनाकार ही लिख सकता है.
मिट्टी
गांव से शहर पहुंचने पर
मिट्टी बदल जाती है
गमलों में सीमित है
शहर की मिटटी
गांव की मिट्टी चिपक जाती है
मेरे हाथों एवं पांवों में
मिट्टी को धोने पर भी
उसकी सोंधी गंध रह जाती है
मिट्टी सांस है मेरी
उर्जा है मेरी
पहचान है मेरी
मेरे पांव तले मिट्टी को
अरसों से बचाए रखा हूं
मिट्टी का न कोई जात है
न धर्म
मैं तुम
वह वे
जो कोई भी गिरे वह थाम लेती है
जैसे मां बच्चे को थामती है
सूखा
हंसिए, सरौते व खुरपियों में
जंग लग गयी है
हमरते हुए घर लौटते बैल
नहीं है अब
खेतों के सूखे मेड ढह गए हैं
क्यारियां सूख गयी हैं
फूल मुरझा रहे हैं
पीपल के पत्ते खामोश हैं
नान तेल लकडी के लिए
निकला घ्रकवाला
लोट आया है पुडिया लिए
जिसमें से झांक रहे थे बलसाकू 1
1. आंध्रप्रदेश के बंजर भूमि में उगनेवाले पत्ते जिसे अकाल के समय खाकर
भूख मिटाई जाती है
वापसी
अचानक नींद खुली
और मां की पुकार सुनाई दी
आ जाओ यहां
बादलों को चीर कर
हांफते हुए कदम रखूंगा
स्वर्ग में
उनके चरणों पर बैठकर
दूंगा सारे सवालों का जवाब
सब कुछ ठीक ठाक है
जरा आराम करने दो कह
घुटनों पर सिर रख कर
बैठा रहूंगा मैं
लेकिन पार किए रास्ते के बारे में
उन्हें बताउं कैसे
सुई
इसका एक छोर नुकीला
और दूसरा छोर सपाट है
स्वर्ग में पहुंचने
के लिए
मैंने सुई के छेद से घुसने की कोशिश की
मुझे पीछे छोड
पहुंच गया उंट वहां
कभी-कभी कविता नुकीला और सपाट होती है
सभी नुकीले और सपाट चीजों को
सुई नहीं कही जाती
वैसे ही सभी अनुभूतियों से
कविता नहीं बनती
शरण
सोने के पहले
दिन की घटनाओं को याद करता हूं
किसने चोट पहुंचाई
किसने मदद की
किसकी मदद कर पाया
किसकी पदोन्नति होनी थी
किसकी हुई
आज भी सिगनेल पर
भिखारी को देख
किसने कार का शीशा उठा दिया
एक के बाद एक
घटनाएं प्रकट होती गई
जाग जाता हूं तो
नया दिन
नया सवेरा
नए प्रश्न
नई परेशानियां
सोमवार से इतवार तक
यही सिलसिला चलता
सो एक दिन
मैंने कविता की शरण ली
उसने मुझे रात दिन
फूल कांटे
चांद तारे
खेत खलिहान
झोपडी अटटालिका
घुमा-कर
जाते-जाते
मुझे शब्द दे गया
तब से
शब्द की शरण में हूं
मैंने शब्द को
देखा
परखा
समझा
अब मैं
उस कुबडे शब्द की तलाश में हूँ
जो कहता है
चलो, पहुंचा दू घर 1
1. केदारनाथ सिंह की चर्चित कविता “ शब्द ” की पंक्ति