बजरंग बिहारी तिवारी ‘बजरू’ की अवधी कविताएँ



बजरू

बजरंग बिहारी तिवारी ने आलोचना खासकर दलित विमर्श के क्षेत्र में जो काम किया है वह अपने आप में अलहदा और विशिष्ट है। लेकिन इसके अलावा भी उनकी एक पहचान है जिससे कम लोग ही परिचित होंगे। बजरंग बिहारी ‘बजरू’ उपनाम से ठेठ अवधी में कविताएँ भी लिखते हैंवे उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के रहने वाले हैं वहीं की मिट्टी में उनका बचपन बीता है। वहाँ बोली जाने वाली अवधी उनकी मूल भाषा है जिसमें उन्होंने बरसों सांस लिया है और आज भी उसे शिद्दत से जीते हैं। इन कविताओं में आपको अवधी की भीनी खुशबू ख़ुद ब ख़ुद महसूस होगी तो आइए आज ‘पहली बार’ पर पढ़ते हैं बजरू भाई की कुछ अवधी कविताएँ 

      
बजरंग बिहारी तिवारी ‘बजरू’ की अवधी कविताएँ

1.

करत पैकरमा गुजरिगै जिंदगी।
धन भरा घर मा गुजरिगै जिंदगी।।
ऊँच देखिन सिर झुकाइन बेवजा
नसा  झूरैमा  गुजरिगै  जिंदगी।
अधकपारी तेल नूरानी धरौ
दर्द तूरैमा गुजरिगै जिंदगी।
सब निबरके एकजुट ठट्ठा करैं,
उन्हैं घूरैमा गुजरिगै जिंदगी।
तू रसोइया के तरफ कब्बौ न गेव
पेट पूरैमा गुजरिगै जिंदगी।
भाय बजरूभागिकै अच्छा किहेव,
खेत खूरै मा गुजरिगै जिंदगी।

2.

के पहिचानै रोग हमार।
लच्छन बतलाई दुइ चार।।
जेठ महीना दिखै हरेर,
गारी सुनिकै उमड़ै प्यार।
नीबर देस कराहै रोज,
हमका लागै सिंह दहार।
माखन मिस्री सपन फुराय
भासन सात समुंदर पार।
काम न धंधा करी उपास,
माल्या मंत्र हवन अग्यार।
भेषज अमरीकम बम्बाय,
छप्पन इंच छुरी कै मार।
ताप न जूड़ी हौ मोदियान,
भा निदान बजरूहुसियार।

3.

गेन कचहरी फुर भुलाबै सच कहब।
प्यार उमड़े मूड़ काटब जिउ गहब।।
मन कहे तब गांव जाबै भार बिन
पकरि अंचरा आंसु पोंछब सुख लहब।
खुब मोहाबै ध्यान रखबै बदि दिहेन
सब्द सोखब जीभि मांगब जब रहब।
लिहिन ठर्रा चले भर्रा नेहपुर
राग जोगिया अब निकारैं सब सहब।
लकड़सुंघवा पुरुब टोला घूमिगा
सुनैं बजरूमंत्र फूंकैं भय दहब।

4.

देस-दाना भवा दूभर राष्ट्र-भूसी अस उड़ी।
कागजी फूलन कै अबकी साल किस्मत भै खड़ी।।
मिली चटनी बिना रोटी पेट खाली मुंह भरा।
घुप अमावस लाइ रोपिन तब जलावैं फुलझड़ी।।
नरदहा दावा करै खुसबू कै हम वारिस हियां ।
खोइ हिम्मत सिर हिलावैं अकिल पर चादर पड़ी।।
कोट काला बिन मसाला भये लाला हुमुकि गे।
बीर अभिमन्यू कराहै धूर्तता अब नग जड़ी।।
मिलैं बजरूतौ बतावैं रास्ता के रूंधि गा।
मृगसिरा मिरगी औसाखामृग कै अनदेखी कड़ी।।

5

कहै गोभी सहै गोभी दहै गोभी रात दिन।
रहै गोभी बहै गोभी गहै गोभी रात दिन।।
कहां परवल कहां बोंड़ा कहां सलजम बाकला
ऊँच कीमत इन सबन कै ढहै गोभी रात दिन।।
कतिक उपयोगी है आलू के कहिस समझे बिना
के परै झुरकुल अचारे  वहै गोभी रात दिन।।
खिलै चंपा रातरानी अउर अढ़उल केतकी
करि सकै सरबरि रसोइयम लहै गोभी रात दिन।।
पात गोभी गांठ गोभी फूल गोभी सब तरह
पेट पूजा करौ बजरूअहै गोभी रात दिन।।

6
.
जमाने से बचिउ धेरिया।
जमाने संग चलिउ धेरिया।।
पिपरवा-पात मन डोले
पवन से न लड़िउ धेरिया।
बनब बिगड़ब औआजादी
संभरि कै पग धरिउ धेरिया।
न जुग बीता न परिपाटी
अगिन है न जरिउ धेरिया।
बड़ा परपंच भासा मा
अर्थ रचिकै भरिउ धेरिया।
कुआं दादुर कै घर बजरू
टराटर मा टरिउ धेरिया।
 
7.

न आँगन बाग न बया चहकै।
न ममता राग न हिया अहकै।।
समंदर मा बहुत पानी गला सूखे
किनारा न मिले दवा लहकै।
दर्द घेरे आँखि टपके राति काँटा
अगरबत्ती जलै दिलमा देह महकै।
सहमिगे भाव रसना दसन मा जड़ता
परसि काया भरम खोल्यौ जुबां ठहकै।
बजरूबाति बनि पाइस भोरहरे तक
तू समझ्यौ मोम है ऊ काठ न टहंकै।

8.

सुनौ सबकै करौ मनकै बड़े भाई।
वहर हटिकै यहर सटिकै बड़े भाई।।
अतिक गुस्सा वतिक सक्कर भरौ लोटा
तनिक बूझ्यौ गटकि जायौ बड़े भाई।
कहूँ अच्छत कहूँ चंदन लगायौ ऊँच माथे मा
बिना जाने चटक हरदी छुआयौ न बड़े भाई।
हियां भेड़हा हुआं बाघिन बछौना एकदम बचिगा
बहुत अनमोल ई किस्सा कह्यौ सबसे बड़े भाई।
टमाटर खेत से आवै भरोसा सोखिगै मंडी
मदरडेरी समुझि बैठ्यौ कामधेनू बड़े भाई।
अर्थ उड़िगे सब्द ठनकैं मामला सुद्ध सरकारी
जीभि गिरवी धर्यौ बजरू कंठ रूंध्यौ बड़े भाई।

9.

पढ़ैया रूठिगे लिखौ नहकै।
देखैया रूठिगे सजौ नहकै।।
बटन दाबौ तरौ तीरथ
हाथ कांखै जपौ नहकै।
उठावैं चौभुजी बनिकै
तुहूँ खींचौ तजौ नहकै।
बराबर मा तलैया है
गहिर डुबकी डरौ नहकै।
अंग छुइगा देह झनकै
भूलि बजरूफिरौ नहकै।

10.

सवा रुपया खर्च कइगा।
जमा पूँजी फर्च कइगा।।
तू आपन रास्ता नापौ
टटोलौ ना जहाँ धइगा।
मोहाबै न कसम खाई
मोहाने पर सपन लइगा।
जतन सब फेल भा समझौ
जहाँ रोकेन तहैं ठइगा ।
सहारा न चले बजरू
बंधाइन खुब मगर ढइगा।

सम्पर्क –

मोबाईल – 09868261895

ई-मेल – bajrangbihari@gmail.com
(इस पोस्ट में प्रयुक्त पेंटिंग्स वरिष्ठ कवि विजेन्द्र जी की हैं.)